नैतिक शिक्षा पर कहानी इन हिंदी- sachchi siksha hindi kahani

नैतिक शिक्षा पर कहानी इन हिंदी: यह एक पौराणिक कहानी है जो शिक्षास्प्रद है पूरी कहानी पढ़ने से आपको मझा आएगा,

नैतिक शिक्षा पर कहानी इन हिंदी

नैतिक शिक्षा पर कहानी इन हिंदी
guruji ki siksha hindi kahani

 

शिक्षा पर कहानी इन हिंदी

एक बहोत ही पुराने समय की बात है किसी जंगल में एक साधु महात्मा का आश्रम था । जंगल के बीचो-बीच आश्रम बहुत ही रमणीय एवं मन को शांति प्रदान करने वाला था । साधु महात्मा उस आश्रम में अपने शिष्यों को विभिन्न विषय आदि पर शिक्षा प्रदान किया करते थे । सभी विद्यार्थी उन साधु महात्मा की बहुत चर्चा करते थे । एवं उन महात्मा की चर्चा दूर-दूर के राज्यों में होती थी ।

एक दिन दो युवक उन महात्मा के पास आए और उनका शिष्य बनने की इच्छा व्यक्त की, दोनों युवक अच्छे कुल और परिवार से थे, और वह दोनों भी उन महात्मा की चर्चा सुनकर उनसे शिक्षा प्राप्त करने हेतु आश्रम पहुंचे थे । महात्मा ने सोचा की इन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार करने से पहेले एक छोटी सी कसोटी की जाये । और उन्होंने उन दोनों से आश्रम में रखे हुए दो मिटटी के कबूतर लाने को कहा- दोनों कबूतर बहुत ही सुंदर थे, तथा उन पर विशिष्ट प्रकार की कलाकृति की गई थी । जिससे वे बेहद खुबसूरत लग रहे थे ।

महात्मा ने एक-एक कबूतर दोनों युवकों के हाथ में दिए और उनसे कहा कि आपको आपके हाथ में दिए हुए कबूतर की गर्दन तोड़नी है । उन युवको को लगा की ये तो बहोत ही सरल काम है । और इससे क्या सिक्षा हासिल होंगी? और इससे गुरूजी क्या कसौटी करेंगे । किन्तु गुरूजी ने इनके सामने एक शर्त रखी, महात्मा ने कहा की आपको इन कबुतरो की गर्दन तब तोड़नी है, जब आपको कोई देख ना रहा हो । स्मरण रहे, यदि आपको इनकी गर्दन तोड़ते हुए किसी ने देख लिया तो आप परीक्षा में निष्फल हो जाओगे । जैसे ही आप गर्दन तोड़ लो मेरे पास आप चले आना ।

सीधा सादा और सरल काम है

दोनों युवकों को लगा कि यह तो बहुत ही सीधा सादा और सरल काम है और दोनों आश्रम से बाहर की ओर चल पड़े ।

एक युवक आश्रम से थोड़ी दूर गया और उसने देखा कि यहां कोई देख ही नहीं रहा है, दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा है, तो मैं गर्दन तोड़ देता हूं और गुरुजी से जाकर यह बात तुरंत कहता हूं ।

दूसरा युवक हाथ में उस कबूतर की कलाकृति को लिए दूर जंगल में चला गया । जब वह एक घने जंगल में पहुंच गया, तब एक पेड़ के नीचे वह बैठा और कबूतर की गर्दन तोड़ने का फैसला किया । किन्तु जैसे ही वह गर्दन तोड़ने वाला था तभी उसकी नजर एक पेड़ पर बैठे एक पक्षी पर पड़ी । तब उसने सोचा कि अगर मैं यहां गर्दन तोड़ दूंगा तो ये पक्षी मुझे देख रहा है ।

झे कोई और तरीका अपनाना होगा । कुछ विचार करने के बाद वह युवक पास की झाड़ियों में जाकर छुप गया उसे लगा इन झाड़ियो में मुझे कोई नहीं देखेंगा और मैं गुरु जी का दिया हुआ काम पूरा कर पाऊंगा । किंतु उसने देखा कि झाड़ियों में छोटे-छोटे किट पतंगे और मक्खियां थी और वह भी उसे देख रही है । यह सोचकर वो झाड़ियों में भी कबूतर की गर्दन नहीं तोड़ पाया ।

वह आवाज उसके हृदय की थी

कुछ समय विचार करने के पश्चात उसे एक उपाय सोचा उसने एक गड्ढा खोदा और उस में बैठ गया अब उसे लगा कि मुझे कोई नहीं देख रहा है, तो उसने उस कबूतर की कलाकृति की गर्दन तोड़ने का फैसला लिया । किन्तु उसे एक विचार आया कि अगर मैं इस कलाकृति की गर्दन तोड़ दूंगा तो इस कलाकृति में जो आंखें बनी है वह मुझे देख रही है और यही सोचकर उसने उस कलाकृति पर एक कपड़ा डाल दिया और जैसे ही वो उसकी गर्दन तोड़ने को हुआ उसे ख्याल आया की मेरी आँखे तो मुझे देख रही है । इस कबूतर की गर्दन तोड़ते हुए । तो उसने अपनी आंखें बंद कर ली अब युवक को नाही कलाकृति की आंखें देख रही है ना उसकी खुद की आंखों से देख रही हैं

और वह जैसे ही गर्दन तोड़ने को हुआ मानो उसके अन्दर से आवाज उठी के अरे! मैं तो देख रहा हूं और वह आवाज उसके हृदय की थी । मैं तो देख रहा हूं अब वह युवक पूर्णतया समझ गया कि गुरु जी की कसौटी जिस शिक्षा की तरफ इशारा कर रही है वो युवक उस कबूतर की कलाकृति को लेकर गुरुजी के पास पहुंचा और उनसे कहा क्षमा कीजिए गुरु जी मैं आपकी दी हुई कसौटी पूर्ण नहीं कर पाया क्योंकि हर समय कोई न कोई मुझे देख ही रहा था अंत में मुझे आभास हुआ कि अगर बाहरी दुनिया मुझे नहीं देख रही तो मेरे भीतर बैठी हुई अंतरात्मा तो मुझे हमेशा देख रही है इसी कारणवश गुरु जी मैं आपकी कसौटी पूरी नहीं कर पाया इस बात के लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं ।

गुरूजी की सिक्षा

गुरु जी ने कहा हे नवयुवक तुम इस कसौटी में असफल नही किंतु पूर्णता सफल हुए हो और यही शिक्षा इस कसौटी के माध्यम से मैं आप दोनों को देना चाहता था । हर एक मनुष्य को यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारी हर एक क्रिया और कर्म पर परमात्मा की नजर है । कोई भी कार्य उस अपारशक्ति से छुपा हुआ नहीं है । इसलिए कोई भी कार्य अगर इस बात को ध्यान में रखकर किया जाएगा तो अनुचित कार्य करने से पहले हमारे कदम स्वयं रुक जाएंगे ।

नैतिक शिक्षा पर कहानी इन हिंदी

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