यह एक बड़ी कहाँनी है मोची और राजकुमारी की कहानी है जिसे पूरी पढ़ने में बहोत मझा आएगा ,
मोची और राजकुमारी की कहानी
गर्मियों का दिन था। अस्त होते हुए सूरज की आखरी किरणे गजनी शहर की खुबसूरत गोल,गुम्बदो और उची मीनारों पर पद रही थी। और वे उनकी पिली रोशनी में ऐसे चमक रहे थे, की माँनो शुध्ध सोने के बने हो, दिनभर बहेती रही तेज गर्म लुक अब ठंडी हवा के शांत झोको में बदल चुकी थी। जिनमे फूलो की हल्की खुशबू भी घुली हुई थी। दिनभर काम करके थके हुए लोग शहर के सार्वजनिक फुव्व्वारे के पास कुछ देर आराम करने के लिए बैठे थे। मस्जिद की मीनारों से आ रही मौलवी की आवाज भी अब शांत हो चुकी थी। पूरा शहेर जैसे दिनभर की चहल पहल के कुछ देर बाद मनो आराम करने के लिए कुछ देर ठहर गया था।
बड़े बाजार की कुछ दुकाने बंध हो चुकी थी। जो खुली थी उनमे से एक दूकान के द्वार पर सईद बैठा था। चलं पिटे हुए वो इस हाल में बैठा था की शायद घर लौटता हुआ कोई ग्राहक उसकी दूकान पर आ जाये।
सायेद मोची का काम करता था। लेकिन उसके चहेरे पर एक अजीब सा आकर्षण और एक गौरव की भवना हमेसा दिखाई देती थी। ये उसके काम के पूरी तरह विपरीत थी। उसको देखकर कोई नहीं कह सकता था। की वो मोची का काम करता होगा। अक्षर लोग उसे कुलीन घरानेका समझ बैठते थे।
सईद को स्कुल जाने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था। क्योकि इसके पिता काफी समझदार इन्शान थे। और अपने निचले दर्जे के पेशे के बावजूद पढाई लिखाई के महत्व को समझते थे। जब सूरज पूरी तरह अस्त हो गया। तो सईद एक ठंडी सास लेकर दूकान बंध करने के लिए खड़ा हुआ। तभी उसे एक फकीर अपनी दूकान की तरफ आता दिखा, उसकी दूकान पर पहोचकर वो रुक गया। सईद ने उसका स्वागत किया, फकीर ने उसे अपने फटे जूते सिलने की प्रार्थना की, सईद ने एक मीठी मुस्कान के साथ उसे अन्दर बिठाया और उसके जूते की सिलाई करने लगा,
शुक्रिया बेटा! फकीर ने कहा भगवान तुम्हे खुश रखे, मेरे पास तुम्हे देने को पैसे तो नहीं है लेकिन मै तुम्हे कोई कीमती सलाह अवश्य दे सकता हु।
सईद ने फकीर को घर आने का न्योता दिया, उस फकीर को भोजन करवाया और रात को वहा रुकने की गुजारिश की, रात गए काफी देर तक दोनों बाते करते रहे। फकीर ने नजर भरकर उसे देखा, और कहा – मै अच्छी तरह देख पा रहा हु की तुम्हारे अन्दर एक अजीब सी उदासी है। तुम जो करते हो उससे खुस नहीं हो, मे तुम्हे बताता हु की तुम अपनी मंझिल कैसे पा सकते हो तुमने ज्ञान की किताबे पढ़ी है, तुम्हारे मन में देश विदेश घूमने की यात्रा मुझे साफ दिखाई दे रही है।
मोची और राजकुमारी की कहानी,rajkumari ki kahani
तुम्हारे लिए मेरी सलाह है की कल ही अपना सारा सामान बेच दो और दुनिया की शेर पर निकल पड़ो, लेकिन मेरी तिन सलाह जरुर याद रखना, पहेला किसीको भी अपना साथी बनाने से पहेले उसे अच्छी तरह देख परख कर ही उस पर विशवास करना, दूसरा कभी भी ऐसी जगह मत जाना जहा पानी न हो और तीसरा अपनी यात्रा के दौरान कभी भी शाम के वक्त किसी शहर के भीतर प्रवेश ना करना, सईद ने उसकी बाते बड़े ध्यान से सुनी अगले दिन सुभह फकीर चला गया।
और सईद ने उसके कहे अनुशार अपना सारा सामान बेचकर यात्रा पर जाने की तैयारी कर ली कुछ व्यापारी अपना माल बेचने के लिए दुशरे नगर जा रहे थे। वो उन्ही के साथ चल दिया। पूरा दिन काफला आराम से आगे बढ़ता रहा। शाम के वक्त ये लोग एक नगर के पास पहोचे। नगर का दरवाजा बंध होने ही वाला था। इसलिए व्यापारी अन्दर जाने के लिए जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगे। तभी सईद को फकीर की याद आई, की शाम के वक्त किसी भी शहर में प्रवेश मत करना। इसलिए उसने व्यापारियों से कहा की वो शहर में सुबह के वक्त ही दाखिल होगा। वे सब लोग उसे वाही बैठा छोड़कर अन्दर चले गए। सईद कुछ देर नदी के किनारे बैठा रहा। फिर इधर उधर घूमने लगा। डर के मारे उसे अकेले नींद नहीं आ रही थी।
घुमते घुमते उसे पता ही नहीं चला की वो कब शहर के कब्रिस्तान में पहोच गया। जैसे ही वो उसके अन्दर घुसा तेज तूफानी हवाओ के साथ, मुशलधर बारिश होने लगी। बारिश और तूफान से बचने के लिए वो एक मकबरे के भीतर घुस गया। मन ही मन वो उस फकीर को कोस रहा था। जिसकी बात मानने के कारण वो अँधेरी रात में अकेला डरावनी कबरो और तूफानी हवामान के बिच यहाँ फस गया था। मकबरे की सीडिया चढ़ते हुए अचानक कोई आहात सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा सामने की दीवार पर उसे दो परछाईया दिखाई दी, वे दो आदमी थे जो जो किसी चीज को दिवार से निचे फेक रहे थे। वो जल्दी से पीछे होकर चुप गया की कही वे उसे देख न ले अपना काम करके वे लोग कुछ ही पालो में तेजी से वहा से निकल गए। उनके काफी दूर चले जाने के बाद सईद अपनी जगह से निकला और दौड़ते हुए उस जगह पर पहोचा। जहा उन्होंने वो चीज फैकी थी ये देखकर उसकी हैरानी और डर की सीमा न रही। की वो एक ताबूत था। जो उल्टा पड़ा था। उसके चारो तरफ खून के धब्बे थे। और उसके ढक्कन के निचे से भी खून बहकर बहार आ रहा था।
डर के मारे सईद के प्राण का साथ छोड़ने को थे। उसे समझ नहीं आ रहा था। की वो क्या करे, और क्या न करे, कुछ ही देर में उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ताबूत हिल रहा हो तो क्या इसके अन्दर मौजूद इन्शान अभी जीवित था। इतना तो वो समझ ही गया था। की ये लोग ताबूद के अन्दर के इन्शान की हत्या कर के भागे है। ताबूद को हिलाते देख उसका डर थोडा कम हो गया। जब उसे ये महसूस हुआ। की शायद उसके भीतर मौजूद इन्शान अभी जिंदा है। वो धीरे से उसके पास गया। और ताबूत को सीधा करके उसका ढक्कन खोला, ये देखकर वो हैरान रह गया। की उसके अन्दर एक बहोत ही खूबसूरत लड़की रस्सियों से बंधी पड़ी थी। और उसके जख्मो से खून बह रहा था। उसने अपना हाथ अपने हाथ में लेकर देखा, और पाया की उसकी सास अभी भी चल रही है। उसने बरसात का पानी अपने हाथो में इकठ्ठा किया और उसके मुह पर छिड़का। तिन चार बार ऐसा करने के बाद धीरे धीरे उवती ने पलकें झबकाई।
सईद ने उनसे पूछा – तुम कौन हो? और इस हाल में कैसे पहोच गई।
दर्द से कराहते हुए वो लड़की बोली – कृपया मेरी मदद करो में हमेशा तुम्हारी अहशान मंद रहूगी।
सईद ने तुरंत अपनी कमर पे बंधा हुआ कपड़ा खोला और उसके कई टुकडे करके युवती के घावो पर बांध दिया। जिनसे उसका रक्त बहेना धीरे धीरे बंध हो गया।
दिन निकलते ही सईद उसे लेके नगर में गया। और एक शराय में ये कह कर ठहर गया की वो उसकी बहेन है। जिसपर रस्ते में डाकुओं ने हमला कर दिया। वो वाही रहकर उसकी देखभाल करने लगा। कुछ ही दिनों में उसके घाव भर गए।
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जब वो काफी ठीक हो गई, तो एक दिन उसने सईद को कलम स्याही और कागज़ लाने को कहा। जब सईद ये सामान ले आया तो उसने एक पत्र लिखा और सईद को एक आदमी का हुलिया बताते हुए कहा – की वो नगर के व्यापार भवन में जाए, और वहा उस आदमी को ये पत्र दे दे, पत्र पढ़ने के बाद जो सामान वो तुम्हे दे वो मुझे लाकर मुझे देना। उसने ताकीद की,
सईद पत्र लेकर वहा गया और उस हुलिए के आदमी को ढूंढ़कर उसने वो पत्र उसे दे दिया। पत्र को पढ़ते ही नजाने क्यों उस आदमी की आँखे चमकने लगी उसने अपनी कमर से एक बटवा निकाला और उसे सईद के हाथ में थमा दिया। सईद ने वो बटवा लाकर उस युवती को सौप दिया, युवती ने उसे खोला और उसमे मौजूद सोने के कुछ सिक्के निकालकर सईद को दिए।
और कहा- ये लों इस पैसे से एक छोटा सा मकान खरीद लों, और अपने और मेरे लिए कुछ कपडे भी,
सईद ने बिना कोई प्रश्न किये ये सारा सामान ख़रीदा और फिर वे वहा से उस मकान में रहने के लिए चले गए।
दो दिन बाद युवती ने दोबारा एक पत्र लिखा और फिर से सईद को वाही करने का आदेश दिया, सईद फिर से व्यापार भवन गया और उसने ये व्यापारी को दूसरा पत्र दिया। इस बार उसने सईद को दो बटवे दिए। जब सईद ने वो बटवे उस युवती को दिए, तो उसने आदेश दिया की आप जाओ और कुछ बढ़िया घोड़े, कपडे और कुछ गुलाम खरीदकर ले आओ।
जब ये सब हो गया तब युवती ने तिसरा पत्र लिखा और इसके बदले में सईद तिन बटवे लेकर लौटा, युवती ने उससे कहा- अब ध्यान से सुनो तुम्हे क्या करना है। ये बतावा लेकर शहर के सबसे बड़े बाजार में जाओ वहा तुम्हे अताउल्ला नाम का एक व्यापारी मिलेगा उसका माल देखना और उसके लिए वो जो भी कीमत मांगे बिना मोल भाव किये वो किंमत उसे देकर सारा माल ले आना ध्यान रहे तुम्हे जरा भी मोलभाव नहीं करना है।
सईद चुपचाप गया और उसने ठीक वैसा ही किया, हलाकि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये सब क्या हो रहा है? लेकिन फिर भी वो यह युवती की हर बात का पालन करता जा रहा था।
मोची और राजकुमारी की कहानी
कुछ दिनों के बाद युवती ने बाकि दोनों बटवे उसे देते हुए कहा- फिर से उसी व्यापारी से और माल खरीद लाने के लिए कहा, और फिर से ये ताकीद की, की किसीभी किंमत पर उसे मोलभाव नहीं करना है। वो जो भी किंमत मांगे बिना चहरे पर सिकंद डाले उसे चुकानी है। सईद फिर से व्यापारी के पास गया। और उसे एक भी पैसा कम करवाए बिना उसका सारा कीमती सामान खरीद लिया, हाथोहाथ उसने भुगतान भी कर दिया। बार बार आनेवाले ऐसे ग्राहक से व्यापारी बड़ा ही खुस था। उसने अगली शाम सईद को अपने साथ गुजारने के लिए न्योता दिया। सईद ने वापस लौटकर युवती को सारी बात बताई।
उसने कहा- ठीक है जाओ, लेकिन वहा इस बात का ध्यान रखना की तुम्हे सिर्फ अपने सामने की तरफ देखना है, दाये और बाये बिल्कुल मत देखना, हलाकि ये आदेश कुछ अजीब सा था। लेकिन सईद ने पहले की तरह उसकी ये बात भी मान ली।
अगली शाम सईद व्यापारी के घर गया। वहा उस व्यापारी ने जमकर उसकी खातिरदारी की युवती के आदेश के अनुसार वो इधर उधर देखने से पूरी तरह बचता रहा। लौटकर उसने वहा जो भी हुआ था वो सब युवती को बताया। युवती ने कुछ देर सोचा और फिर कहा – कल बाजार जाओ, और इस बार उसे अपने घर आनेका न्योता दो। अगले दिन सईद ने जब उसे न्योता दिया तो व्यापारी ने उसे खुशी खुशी स्वीकार कर लिया।
अब युवती ने तुरंत व्यापारी के स्वागत की तैयारिया करना शुरू कर दिया। ढेरो नौकर नौकरानियो की मदद से पुरे घर की साफ सफाई की गई। बढ़िया बढ़िया खाने के लिए ढेरो व्यंजन तैयार किये गए। संगीत और नाचगाने का भी इंतजाम किया गया। शाम को ठीक समय पर व्यापारी आया और देर रात तक सईद और व्यापारी खाते पिटे और मोज करते रहे। जब काफी रात हो गई तो युवती के आदेश अनुसार सईद ने उसे वाही रुकने की गुजारिश की, व्यापारी खातिरदारी से बड़ा ही खुश था। और साथ ही नशे में धुत भी था। इसलिए बिना कोई विरोध किये चुपचाप वही सो गया। उसको गहरी नींद में सो जाने के बाद युवती वहा आई वो व्यापारी के पास गई और उसके ऊपर झुकी और अचानक बिजली की तरह उसने अपने कपड़ो में छुपी तलवार निकालकर उसके सिने में भोक दी एक क्षण के लिए व्यापारी का शरीर तड़पा और फिर सदा के लिए शांत हो गया।
पास बैठा सईद ये देखके जोर से चिल्ला पड़ा। ये क्या किया तुमने में इतने दिनों से तुम्हारा साथ क्या इसलिए दे रहा था, की तुम एक जीते जागते इन्शान की हत्या कर दो ।
युवती ने एक ठंडी सास ली और कहा- मै तुम्हे अपनी पूरी कहानी सुनाती हु। तब तुम्हे समझ में आएगा की मैंने ऐसा क्यों किया?
मै इस नगर की सुलतान की बेटी हु, यहाँ की शहजादी और ये व्यापारी इस नगर के एक कसाई का बेटा है। एकदिन वह बाजार से गुजर रहा था। की मेरी नजर इस पर पड़ी इसके आकर्षक रूप रंग के कारण में इस पर मोहित हो गई। लेकिन में ये नहीं जानती थी की इसका दिल अन्दर से कितना काला है। और साथ ही इसका चरित्र भी ख़राब है। मेरी सहेलियों और दासियों की सहायता से मेरी और इसकी मुलाकाते होने लगी। मैंने इसे ढेर सारा पैसा भी दिया। और अपना व्यापार शुरू करने में उसकी मदद की जल्दी ही ये काफी धनवान हो गया।
एक दिन इसे बिना बताये अचानक इसे मिलाने इसके घर पर गई। और ये देखकर मेरे क्रोध और नफरत की सीमा न रही की ये वहा किसी दूसरी औरत के आगोश में खोया था। ये उसके साथ बातो में इतना खोया था की इसे वहा मेरे आने कभी पता नहीं चला, मै जोर से चिल्लाई और मैंने उस औरत को लात मारकर वहा से गिरा दिया। ये बिना कुछ बोले बहार निकल गया। और कुछ ही पल में दो आदमियों को साथ लेकर लौटा। उन्होंने मेरे हाथ पैर पकड़ लिए। और छुरी से मुझ पर वार करने लगे। मै चिल्लाती रही लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी, कई बार वर करने के बाद उन्हें लगा की मै मर गई हु, उन्होंने मुझे ताबूद में डाला और नगर के बाहर मकबरे में फैक आये। लेकिन शायद इश्वर मुझपर महेरबान था। जो उसने मुझे बचाने के लिए तुम्हे वहा भेज दिया। और आज तुम्हारी मदद से मेरा बदला भी पूरा हो गया।
अब तुम मेरे सुल्तान पिता के पास जाओ और उन्हें मेरे जिंदा होने की खबर दो वे तुम्हे बहोत बड़ा इनाम देंगे। ये सुनकर सईद की खुशी का ठिकाना न रहा। वो खुसी खुसी सुलतान को ये खबर देने के लिए चल दिया। अब जरा कुदरत की मर्जी देखिये। की सुलतान को उस व्यक्ति से मिलना जुलना पसंद नहीं था। जब उस दिन वो उससे मिलने गई तब सुलतान बड़ा ही क्रोधित हो गया था। जब सहजादी वापस नहीं आई तो उसने अपने सैनिको से बहोत ढूंढवाया लेकिन वो नहीं मिली, इससे सुलतान को लगा की वह उस प्रेमी के साथ भाग गई है।
उसने उसी क्षण प्रतिज्ञा की थी की अगर सहजादी वापस लौटती है तो वो उसे दंड देने के लिए उसका विवाह एक मोची से करवा देंगा। ताकि उसे अपनी करनी का फल मिल सके।
सईद जब महेल में पहोचा और उसने सुल्तान को अपनी इस बेटी के बारे में सब बताया तो वो सुनकर बहोत खुस हुआ। उसने तुरंन्त पूरी शानो सौकत के साथ उसे महेल में वापस बुलावा लिया, बाप बेटी दोनों के आसु थम ही न रहे थे। कुछ देर बाद जब भावनाओ का द्वार थमा तो सुलतान को अपनी प्रतिज्ञा की याद आई, वो अपना सर दोनों हाथो से पकड़कर बैठ गया। की आब उसकी बेटी का भविष्य बर्बाद हो जाएगा।
सहजादी ने जब उसकी दुःख का कारण पूछा तो उसने अपनी प्रतिज्ञा के बारे में उसे बताया। ये सुनकर सहजादी मुश्कुरा दी, उसने सईद की और इशारा करते हुए कहा- तो ठीक है इस मोची से मेरा विवाह होने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है। य जानकार की सईद अपने शहर में मोची का काम करता था। सुलतान भी बड़ा प्रसन्न हुआ। और उसने धूमधाम से दोनों का विवाह कर दिया।
इस प्रकार सईद को अपनी मंझिल भी मिल गई। और फकीर के साथ की गई भलाई और उसकी सलाह को मानने का उचित इनाम भी।
मोची और राजकुमारी की कहानी
दोस्तों ये कहानी मोची और राजकुमारी की कहानी कैसी लगी comment जरुर कीजिए।
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