विक्रम बेताल की कहानियां : अंधेरी रात हाथ में तलवार लिए बेखौफ राजा विक्रमादित्य और उनके सामने भयानक पेड़ पर लटका लाल होटो और बड़े नाखून वाला बेताल. जब भी विक्रम बेताल की बात की जाती है तो यह दृश्य आपके जहान में जरूर उभर जाता होगा और ऊपर जाती है बेताल की वह खौफनाक हंसी । पर एक सवाल आप लोगों के दिमाग में जरूर आता होगा कि क्या सच में विक्रम बेताल की कहानी सच थी। चलिए आज आपको बताएंगे कौन थे राजा विक्रमादित्य और वह भयानक बेताल को लाने क्यों उस जंगल में चले गए थे।
विक्रम बेताल की कहानियां
राजा विक्रमादित्य कौन था।
प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम से एक आदर्श राजा हुआ करते थे। कहा जाता है कि वह अपने साहस पराक्रम और सौर्य के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे। ऐसा भी कहा जाता है कि महाराज विक्रम सिंह अपनी प्रजा के जीवन के सुख दुःख दर्द जानने के लिए रात में भेष बदलकर अपने नगरों में घूमा करते थे। वे बड़े ही दयालु किस्म के राजा थे वह दुखियों का दुःख दूर किया करते थे। महाराज विक्रम और बेताल की किस्तों पर बहुत सारे ग्रंथ लिखे गए। महाराज विक्रमादित्य और बेताल के किस्सों पर बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी नाम के ग्रंथ आज भी बहुत लोकप्रिय हैं।
कहा जाता है कि बेताल पच्चीसी को महाकवि सोमदेवभट्ट जिन्हें बेतालभट्ट के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने 25 वर्ष पूर्व रचित किया था। वह महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे कहा जाता है। कि महाराज विक्रमादित्य ने बेताल को 25 बार पेड़ से उतार कर ले जाने की कोशिश की थी। और बेताल ने हर बार रास्ते में एक नई कहानी सुनाई थी।
विक्रम बेताल की कहानिया
भले ही आप लोगों को एक कहानी लगे पर महाराज विक्रमादित्य का राज्य एक समय में भारत देश में जरूर हुआ करता था। उन्हीं के नाम से विक्रमी संवत मनाया जाता है। महान पराक्रमी महाराज विक्रमादित्य का नाम इतिहास से मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी।
विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा दोस्तो क्योकि महाराज विक्रमादित्य के बारे में भारतीयों को पता न लग पाए इसलिए कई सारे सबूतों को मिटा दिया गया और आज भी कई ऐसे दस्तावेज और प्राचीन हस्तलिपिया मिलती हैं जिनमें महाराज विक्रमादित्य के बारे में वर्णन मिलता है। चलिए आज आपको बताते हैं कौन थे महाराज विक्रमादित्य और कौन था बेताल?
कौन था बेताल?
कहा जाता है की पुराने समय में एक दुष्ट तांत्रिक अपनी दुष्ट सक्तियो को बढ़ाने के लिए एक शैतानि अनुष्ठान करता है। जिसको पूरा करने के लिए उसको 32 लक्षण वाले स्वस्थ ब्राह्मण पुत्र की बलि देने की आवश्यकता पड़ती है। वह त्रान्त्रिक एक ऐसे ही बच्चे की तलाश करता है और उसको ऐसा बच्चा मिल भी जाता है वह दुष्ट त्रान्त्रिक वह ब्राह्मण के लडके की बलि देने के लिए उसका पीछा करता है.
वह बच्चा बचाव करते हुए भागते भागते घने जंगल में चले जाता है। जंगल में उस बच्चे को एक प्रेत मिलता है। बालक प्रेत को अपनी आप बिती बताता है। प्रेत को उस बालक पर दया आती है वह प्रेत उसको बचने के लिए शक्तिया देता है और कहता है कि अगर वह जंगल में एक वुक्ष पर लटक जाएगा तो वह त्रान्त्रिक उसका कुछ नहीं कर पाएगा। और वही बालक बेताल होता है।
उस प्रेत द्वारा उस बालक की मदद करने की वजह से वह तांत्रिक उस बालक को मार नहीं पाता है। इस वजह से त्रान्त्रिक का प्रतिष्ठान अधूरा रह जाता है। अपने प्रतिष्ठान को पूरा करने के लिए वह दुष्ट त्रान्त्रिक फिर एक नया जाल रचता है।
नया जाल रचता है
वह एक साधु का स्वांग रचता है। और महाराज विक्रम के पराक्रम और शौर्य गाथाओं को सुनकर अपना काम निकलवाने के लिए एक ऐसा जाल बनाता है। जिस जाल में महाराज विक्रम जी फस जाते हैं। वह जब भी महाराज विक्रम सिंह से मिलने आता है। हमेशा एक नया फल लेकर आता है उस फल के अंदर एक कीमती रत्न होता है। इसका भेद पता लगाने के लिए महाराज विक्रम सिंह उस साधू की खोज करते हैं ।और महाराज विक्रम सिंह उस साधु को ढूंढ ही लेते हैं। वह दुष्ट तांत्रिक महाराज को अपने विश्वास में ले लेता है। और महाराज बिना उसकी मंशा जाने बेताल को लेने चले जाते हैं। क्योंकि वह तांत्रिक महाराज से बेताल को लाने के लिए कहता है।
महाराज जब उस पेड़ पर जाते है। जहा बेताल होता है तो महाराज बेताल को अपने साथ चलने को कहते हैं इस पर बेताल महाराज के सामने एक शर्त रखता है। बेताल कहता है कि मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊंगा कहानी पूरी सुनने के बाद मैं तुमसे एक प्रश्न करूंगा अगर तुमने उस प्रश्न का सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हें मार डालूंगा और अगर तुमने सही उत्तर दे दिया तो मैं तुम्हें छोड़ दोबारा उस पेड़ पर लटक जाऊंगा।
बेताल द्वारा सुनाई गई इन्हीं कहानियों को विक्रम बेताल की कहानियां कहा जाता है। बेताल ने यात्रा के दौरान कुल यही 25 कहानियां सुनाई थी।
राजाविक्रम बेताल की कहानियां
1 कहानी : पध्मावती की कथा, पाप किसको लगा?
रानी पद्मावती की पूरी कहानी
काशी में एक राजा राज्य करता था। उसका नाम था प्रताप मुकुट उसका एक बेटा भी था उसका नाम था वज्रमुकुट, एक बार राजकुमार वज्रमुकुट अपने ही राज्य के दीवान के लड़के को साथ लेकर जंगल में शिकार करने के लिए गए। जंगल में वृक्षों के बीच घूमते घूमते उन्होंने एक तालाब मिला और उसके किनारे वृक्ष निचे बैठे। तालाब इतना अच्छा था की जंगल के बीचो-बीच तालाब होने की वजह से वहां पशु पक्षी बहुत किल्लोल कर रहे थे। और पानी में कमल भी खिले थे, और हंस भी मजे से विचरण कर रहे थे। तालाब के किनारे बहुत पेड़ थे। दोनों मित्रों वहां रुक गए, और तालाब के पानी में हाथ मुह धोकर और पानी पीकर बाहर निकले। वहां बहोत बड़ा मंदिर था, जंगल से निकलते ही महादेव का मंदिर था। मंदिर के बाहर वृक्ष थे वहा उन्होंने घोड़े बांधे और मंदिर में दर्शन करने के लिए गए।
मंदिर में दर्शन करके बाहर आए तो देखते हैं कि तालाब के किनारे एक बहुत ही खूबसूरत राजकुमारी अपनी सखियों के साथ स्नान करने के लिए आई है। दीवान का लड़का तो वहां जहां घोड़े बांधे थे वहां ही बैठा रहा, लेकिन राजकुमार टिक नहीं पाया आगे बढ़ा और बढ़ता ही गया। राजकुमारी भी उसकी ओर देखा और वह राजकुमार वज्रमुकुट भी उसे देखता रह ही रहा। आपस में देखते-देखते उन दोनों में प्रेम हो गया।
राजकुमारी ने यह संकेत देते हुए ऐसा किया की उसके बालों में से कमल का फूल निकाला कानो से लगाया, फिर मुह से दांतों में दबाया फिर पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा कर संकेत देके चल बसी। राजकुमारी के चले जाने के बाद राजकुमार बहुत ही निराश हो गया और अपने मित्र के पास आया और सब बनी हुई घटना बताकर बोला- मैं इस राजकुमारी के बिना जीना मुश्किल है। मुझे यह बहुत भा गई है। लेकिन न तो मुझे उसका नाम मालूम है, ना तो वह कहां रहती है वह मालूम है। ये राजकुमारी मुझे दोबारा कैसे मिलेगी?
राजकुमार के मित्रों दीवान के बेटे ने कहा- मित्र! गभाराओ नहीं, वह राजकुमारी भी आपसे प्रेम करती है। वह सब कुछ आपको बता कर गई है, इशारो इशारो में,
राजकुमार ने पूछा वह कैसे?
वह मित्र बोला उस राजकुमारी ने कमल का फूल सिर से उतारकर कानों से टकराव किया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहने वाली हूं। दांतों से कुतरा तो उसका मतलब था की मैं दंतबांट के राजा की बेटी हु। पैर से दबाने का अर्थ मेरा नाम पद्मावती है। और छाती से टकराव करो उसने बताया कि तुम मेरे दिल में मैं तुम्हें पसंद करती हूं।
अपने मित्र की ऐसी बात सुनकर राजकुमार का खुशी का ठिकाना नहीं रहा और बोला- मित्र! अब हम कर्नाटक देश में चलते हैं।
दोनों मित्रों वहां से कर्नाटक देश में जाने की योजना बना ली और घूमते फिरते विचरण करते दोनों कई दिन बाद कर्नाटक पहुंच गए। ढूंढते ढूंढते राजा के महल के पास गए तो देखा एक बूढ़ी औरत अपने घर के दरवाजे पे बैठी चरखा चला रही थी। उसके पास जाकर दोनों घोड़ों को खड़ा करके नीचे उतरे और बोले मातेश्वरी हम व्यापारी हैं। हमारा सामान पिच्छे आ रहा है। थोड़े दिन रहने के लिए एक कमरा चाहिए।
वह बूढ़ी औरत उन दोनों लड़कों की बात सुनकर उनके मन की ममता जाग उठी। वह बोली- बेटा इसे तुम तुम्हारा ही घर समझो और जब तक जी चाहे रह सकते हो। दोनों ने उस मातोश्री के वहां ठहर गए। दीवान के बेटे ने उस मातोश्री को पूछा- माजी तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन रहते हैं? और तुम्हारा घर परिवार का गुजारा कैसे चलता है?
मातोश्री ने जवाब दिया- पुत्रो मेरा भी एक बेटा है। और वो राजा की सेवा में है। और मैं भी राज महल में काम करती जो कि बेटी पद्मावती की आई थी अब मैं बूढी हो गई हूं, इसलिए मेरे घर राजा खाने पीने को दे दे देता है, और मैं दिन में सिर्फ एक बार राजकुमारी को देखने के लिए महल में जाती हूं, यही मेरी दिनचर्या है।
दोनों मित्रों में से राजकुमार ने मातोश्री को कुछ धन दिया और कहा- माजी जब कल तुम राज दरबार में जाओगी। तब राजकुमारी से बताना की जेठ सुदी पंचमी को तुझे जो राजकुमार तालाब में नहाते हुए दिखा था। वह हमारे नगर में आ गया है।
अगले दिन जब वह बूढ़ी औरत राज महल में चक्कर लगाने और पद्मावती को देखने के लिए गई। तो उसने राजकुमार का संदेश राजकुमारी को कह सुनाया। सुनते ही राजकुमारी ने गुस्से होकर हाथों में चंदन लगाकर उस बूढ़ी औरत के गाल पर जोरदार तमाचा मारा और कहा मेरे घर से निकल जा बुढिया। बुढियाने घर आकर सब हाल राजकुमार को बता दिया। राजकुमार बहुत चिंतित होने लगा। तब उसके मित्र ने कहा- आप जरा भी घबराए नहीं बातों को समझने की कोशिश कीजिए। उसने दोनों हाथ की उंगलियां सफेद चंदन में भिगोकर मारी, इसका मतलब यह होता है कि अभी दस दिन चांदनी रात है। उनके बीतने पर पर ही में अंधेरे में रात को मिल सकती हूं।
अब दोनों मित्र ने दस दिन बितने का इन्तजार किया। दस दिन के बीतने के बाद फिर बुढिया ने राजकुमारी को खबर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उंगलियां डुबोकर और उसके मुंह पर मारी और कहा भाग यहां से।
बुढ़िया ने फिर से आकर दोनों मित्रों को बताया राजकुमार शौक से व्याकुल हो गया। लड़के ने फिर से समझाया मित्र इसमें हैरान होने की कोनो बात नहीं है। उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म है, इसलिए तिन दिन और रुक जाओ।
तिन दिन बीतने पर बुढिया फिर वहां पहुंची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार मार मार के पश्चिम की खिड़की से बहार निकाल दिया। राजकुमार को बता दिया। सुनकर राजकुमार का दिमाग बिगद्गया। दीवान का लड़का बोला- मित्र! उस आज रात को तुम्हें उस खिड़की के रास्ते से बुलाया है।
खुशी के मारे राजकुमार उछल पड़ा। रात का समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार कमर पर बांधे। और दोपहर रात बीतने पर जा पहुंचा और खिड़की में होकर अंदर राजमहल में घुसा वहा राजकुमारी तैयार खड़ी हुई थी। वह उसे अपने कमरे में ले गई।
अंदर की हालत देखकर राजकुमार की आंखें चौंधिया गई। एक से बढ़कर एक चीजें थी वहां, रात भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया सुबह होने वाली थी तब राजकुमार को अंदर ही छिपा दिया। रात होने पर निकाल लिया। काफी दिन बीत गए। राजकुमार को अपने मित्र दीवान के लड़के की याद एक दिन आई। उसे चिंता होने लगी कि पता नहीं कैसे हाल में होगा, वो चिंतित होने लगा था। उदास चेहरा देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा? राजकुमार बोला- मेरा एक बड़ा प्यारा दोस्त था। उनकी होशियारी और चतुरता की वजह ही आज हम दोनों मिल पाए हैं। में उसे मिलना चाहता हु।
राजकुमारी ने कहा- मैं तुम्हारे मित्र के लिए बहोत ही स्वादिष्ट भोजन बनाने को बोलती हु, उसे लेके रात को तुम जाना और खिलाकर और तसल्ली देकर वापस चले आना।
खाना साथ में लेकर राजकुमार अपना मित्र के पास पहुंचा। वे महीने भर से मिले नहीं थे। राजकुमार ने मित्र से मिलने पर सारा हाल बताया और कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुरता की सारी बातें कह सुनाई है। तभी तो उसने यह भोजन बनवाकर भेजा है, तुम्हारे लिए।
दीवान का लड़का बहुत बड़ी गहरी सोच में पड़ गया, और बोला- यह तुमने अच्छा नहीं किया मित्र। राजकुमारी समझ चुकी है कि जब तक तुम्हारा मित्र मैं यहां पर हूं वह तुम्हें अपने वश में नहीं कर सकती इसलिए उसने यह खाने में जहर मिला कर भेजा है।
यह बोलकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाया और कुत्ते के आगे रख दिया। झट से कुत्ता खाने लगा और खाते ही थोड़ी देर में वह मर गया।
राजकुमार को बहुत ही बुरा लगा अरे यार ऐसी स्त्री से भगवान बचाए। मैं अब उनके पास में नहीं जाने वाला।
चतुर दीवान का बेटा बोला- नहीं, अब ऐसा उपाय सोचना चाहिए कि इस राजकुमारी को हम अपने राज्य में अपने घर राजमहल ले जाना। आज रात को तुम वहां जाओ राजकुमारी के पास जाओ। जब भी राजकुमारी सो जाए तो उसके दाई जांध पर त्रिशूल का निशान बना देना और गहने लेकर चले आना।
राजकुमार अगली रात दरबारमे गया तब अपने मित्र ने बताया था वैसा ही किया। और गहने लेकर चला आया। राजकुमार आकर अपने मित्र से मिला, दीवान का लड़का राजकुमार के आते ही अपना बेश योगी का धारण कर लिया और सम्शान घाट पर जाने के लिए निकल गया। और राजकुमार को बोला की ये गहने तुम किसी सुनार की दुकान पे बेच दो। अगर कोई पूछे तो कहेना की यह मेरे एक योगी बाबा ने दिए है। और उस पूछने वाले को मेरे पास सम्शान घाट पे ले आना। मै वहा ही बैठा रहूगा।
ऐसी दोनों मित्रो की बात हो गई। दीवान का लड़का सम्शान की और योगी के भेस में गया और राजकुमार गहने की पोटली लेकर बेचने निकला। सुनार की दुकान ढूंढते फिरते राजमहल की आगे ही एक सुनार की दुकान थी। वहा राजकुमार गहने बेचने के लिए गहनों की पोटली सुनार को दी। सुनार ने गहने देखते ही पहेचान गए की ये गहने तो राजा के दरबार के है। इसलिए वह सुनार राजा के सिपाहियों को बुलाया और गहनों की बात बताई। तब राजा के सोपहियो ने राजकुमार को पूछा की ये गहने तुम कहा से लाये हो? तब राजकुमार ने जवाब दिया की ये गहने मुझे एक योगी बाबा ने दिया है। सिपाहियों ने यह बात राजा को पहोचाई और राजा ने योगी बाबा को बुलाने का आदेश दिया की इन लोगो ने चोरी की है। योगी को भी बुलाया गया फिर दोनों राजकुमार और योकि के भेस में मित्र दोनों को राजदरबार में हाजिर किया गया।
राजदरबार भरा हुआ था और दोनों को राजा के सामने सिपाहियों ने प्रस्तुत किया। राजाजी गहनों की पोटली के गहने देखते हुए कहा योगी बाबा आपको ये गहने कहा से मिले। तब योगी बाबा ने जवाब दिया- हे राजा मैंने ये गहने चुराए नहीं है ये तो सम्सशान घाट पे एक दिन रात को एक डाकिनी आई थी उसने दिए थे। मुझे इसका क्या काम इसलिए में ये इस लडके को दे दिया। योगी बाबा राजकुमार की और इशारा करते हुए बोला।
राजा बड़ी हैरत में पद गए और बोले वो डाकिनी को आप पहेचान सकते हो क्या? योगीजी बोला रात के अँधेरे में थी लेकिन उसकी दाई जांघ पे त्रिशूल का निशान है।
राजा ने चुपके से अपनी रानी को जा के कहा जरा देखो तो अपनी बेटी की जांघ पे तो वह निशान नहीं है न। रानी ने जाके देखा तो निशान पाया और राजा को बताया।
राजा ने कुछ सोचा न समझा योगी बाबा को एक तरफ लेजाके पूछा – बाबाजी ऐसी खोटी स्त्रिया के लिए कौन सी सजा उत्तम है। योगी बने हुए दीवान के लडके ने कहा।– राजा जी उसे तड़ीपार यानि अपने नगर से दूर छोड़ दिया जाना चाहिए। और योगी और उस लडके को छोड़ दिया।
फिर राजा ने तुरंत अपने सैनिको को कहा की पध्मावती को डोली में बिठाकर नगर की बहार जंगल में छोड़ दो। सैनिको ने तुरंत ही डोली बिठाकर जंगल की और निकल गए। और जंगल में राज्कुअरी को छोड़ दिया।
राजकुमार और उसके मित्र ऐसे मौके की ताक में थे की वहा सैनिक उस राजकुमारी को छोडके गए की दोनों ने उस राजकुमारी से मिले और उसे लेके अपने राज्य में आ गए। और खुशी ख़ुशी रहेने लगे।
कहानी बताकर बेताल बोला राजा विक्रमादित्य आप अब यह बता दो कि पाप किसको लगा होगा।
राजा विक्रमादित्य ने कहा पाप तो राजा को ही लगा, दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया, कोतवाल ने राजा को कहना माना, और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिध्ध किया, राजाने पाप किया जो बिना विचारे उसकी बेटी को देश से निकलवा दिया।
विक्रमादित्य का इतना कहते ही बेताल उनके कंधे से उड़कर पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा वापस उसके पीछे पीछे गया और बेताल को लेकर फिर से चल पड़ा और फिर एक कहानी बेताल सुनाता है।
2 कहानी : तीन तरुण ब्राह्मणों की कथा
3 कहानी : शुक- सारिका की कथा
4 कहानी : वीरवर की कथा
(5) श्रेष्ट वर कौन,असली वर कौन?
उज्जेन नगर में महाबल नाम का एक राजा रहेता था। उनके दूत का नाम हरिदास था जिसकी एक पुत्री थी उसका नाम महादेवी था और वे बहोत सुंदर थी। हरिदास की पुत्री की उम्र जब विवाह के अनुरूप हुई तब दूत हरिदास को बहोत चिंता होने लगी। इसी बिच राजा ने हरिदास को कोई दुसरे राजा को संदेश देने के लिए भेजा। काफी दिन चलने के बाद हरिदर उस दुसरे राजा के राजमहल पहोचा। वहा का राजा ने उसे बहोत अच्छी तरह से रखा आराम के लिए एक दो दिन रुकने का आग्रह किया महेमान नवाजी की।
हरिदास आराम से वहा एक दिन रहने के बाद अपने राज्य में आने वाले थे उसके अगले दिन हरिदास के पास एक ब्राह्मण आया और बोला- तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।
हरिदास ने कहा- में मेरी लड़की का ब्याह उससे करूँगा जिसमे सारे गुण हो।
ब्राह्मण ने कहा:- मेरे पास एक ऐसा रथ है जिसपर बैठकर जहा चाहो वहा पल भर में पहोच पाओगे।
हरिदास बोला- ठीक है सबेरे उसे यहाँ ले आना।
अगले दिन ब्राह्मण और हरिदास
वह दोनों रथ में बैठकर उज्जैन आ पहोचे। देवयोग से उससे पहले हरिदास का पुत्र अपनी बहन से ब्याह के लिए किसी और लडके को ले आया और उसी ब्राह्मण की स्त्री (पत्नी) भी उसी वक्त किसी और लडके से अपनी पुत्री का ब्याह के लिए ले आई। इसी तरह तीनो वर एक ही समय पे इकठ्ठे हो गए। हरिदास सोचने लगा की मेरी पुत्री केवल एक है और अब तिन वर एकसाथ इकठ्ठे हो गए है अब क्या करे! किसकी माने। सब मुझवन में सोच ही रहे थे की वहा एक राक्षस आया और झट से हरिदास की सुन्दर कन्या को उठा के चल पड़ा। वह कहा ले गया किसको पता ।
लेकिन उन तीनो वर में से एक ज्ञानी था। उसने बताया की राक्षस कन्या को विध्याचल पहाड़ के ऊपर ले गया है। दुसरे वर ने कहा मेरे रथ में बैठ जाओ हम घड़ीभर में वहा पहोच जायेगे। तीसरा वर बोला- मै शब्दवेधी तीर चलाना जानता हु। राक्षस को मार गिराऊंगा।
वे सभी रथ में बैठकर विध्याचल पहाड़ पर पहोचे और राक्षस को मारकर वह कन्या को सुरक्षित वापस ले आये।
इतना कहकर बेताल बोला हे राजाजी बताओ उन तीनो वर में से किसके साथ उस लड़की का ब्याह करना चाहिए।
विक्रमादित्य राजा ने कहा:- जिस ने राक्षस का वध किया उसके साथ उस लड़की का व्याह करना चाहिए। क्योकि असली वीर तो वह है बाकि के दोनों ने सिर्फ उसकी मदद की लेकिन मारा तो उसी है।
राजा का इतना कहते ही बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका और राजा फिर उसे लेकर आया और अब बेताल ने छठ्ठी कहानी सुनाई।
5 कहानी : सोमप्रभा की कथा
6 कहानी : रजक-कन्या की कथा
7 कहानी :सत्वशील की कथा
8 कहानी :तीन चतुर पुरुषों की कथा
9 कहानी :राजकुमारी आनंगरति की कथा
10 कहानी : मदनसेना की कथा
11 कहानी : राजा धर्मवज की कथा
12 कहानी :यशकेतु की कथा
13 कहानी :ब्राह्मण हरिस्वामी की कथा
14 कहानी :वणिक- पुत्री की कथा
15 कहानी :शशिप्रभा की कथा
16 कहानी :जीमूतवाहन की कथा
17 कहानी :उन्मादिनी की कथा
18 कहानी :ब्राह्मणकुमार की कथा
19 कहानी :चंद्रस्वामी की कथा
20 कहानी :राजा और ब्राह्मण पुत्र की कथा
21 कहानी :अनंगमंजरी व मनिवर्मा की कथा
22 कहानी : चार ब्राह्मण भाइयों की कथा
23 कहानी : अघोरी तपस्वी की कथा
24 कहानी :एक अदभूत कथा
25 कहानी : भिक्षु शान्तशील की कथा
बेताल ने यात्रा के दौरान कुल 25 कहानियां सुनाई थी। अब आप लोग यह सोचते होंगे कि आखिरी कहानी में क्या होता है और इसका अंत कैसे होता है तो चलिए आज हम आपको यह भी बताते हैं।
अंतिम कहानी में जब राजा उस बेताल को लेकर योगी के पास जाते हैं। बेताल और महाराज विक्रम सिंह को एक साथ देख कर वह तांत्रिक रूप में जो योगी होता है। वह बहुत ही खुश होता है। और राजा को खूब धन्यवाद करता है वह यह भी बोलता है कि महाराज आप सभी में श्रेष्ठ हो इतना कहकर वह उस बेताल को महाराज के कंधे से उतार लेता है। और उस बेताल को स्नान करा कर फूल मालाओं से सजा कर रख देता है।
vikram betal ki kahaniyan
अपने अनुष्ठान के लिए अपने अनुष्ठान के दौरान वह महाराज विक्रमादित्य से सर झुका कर प्रणाम करने को कहता है। पर राजा को उस बेताल की एक बात याद आ जाती है। जो 25 कहानी में है वह कहता है कि मैं राजा हूं और मैं किसी के सामने सर नहीं झुका सकता पहले आप अपना सर झुकाइए! योगी जैसे ही सर झुकाता है। राजा तलवार से उस दुष्ट योगी तांत्रिक का सर काट देता है।
क्योंकि अंतिम कहानी ही कुछ ऐसी होती है। कि महाराज विक्रमादित्य को सब पता चल जाता है कहा जाता है कि महाराज विक्रमादित्य द्वारा तांत्रिक को मारने के बाद वह बेताल काफी प्रसन्न होता है।
बेताल महाराज से कुछ भी वर मांगने को कहता है पर महाराज बोलते हैं कि अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना यह है कि आपने जो 24 कहानी सुनाइए और यह 25वीं कहानी यह सारे संसार में प्रसिद्ध हो जाएं और बेताल ऐसा ही वरदान उन्हें दे देता है।
और यही कहा जाता है कि बेताल वाली इस घटना के बाद महाराज विक्रमादित्य का राज्य पूरे भारतवर्ष से लेकर विदेशों तक फैल गया था। महाराज विक्रमादित्य और बेताल की इन कहानियों को कई लोग सच मानते हैं।
आप लोगों की महाराज विक्रमादित्य के बारे में क्या राय है आप हमें कमेंट करके जरूर बताइए विक्रम और बेताल की इन कहानियों के बारे में आपकी क्या राय है।
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