यह एक सास बहु की कहानी है जो की बहु की अपनो प्रति भावनाओ को दर्शाती है
सास बहु Padhi likhi bahu ki kahani
आज झिनिबा बहोत खुश थी। उसका पुत्र महेश रेलवे के टिकट काउंटर पर कलार्क की नौकरी पर लग गया था। वो मंदिर गई और एक सो एक रुपैये का प्रसाद चढ़ाके आई। ख़ुशी के मारे पुरे महोल्ले में एक एक घर में मिठाई बात के आई। सब ने झिनिबा को बधाई दी और कहा की अब तो जल्दी से महेश की शादी कर दो कोई सही लड़की देख कर। अब तो महेश पक्की नौकरी पर है तो लाईन लग जाएगी लड़की वालो की, झिनिबा की पड़ोसन मंथरा ने कहा।
हा, मगर एक बात का ख्याल रखना लड़की ऐसी हो मगर एक बाट का ख्याल रखना ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की के चक्कर में मत पड़ना। पढ़ी लिखी लड़की का मन घर के कामो में नहीं लगता है। और तुम ठहेरी कम पढ़ी लिखी वो तो तुम पर ही रोप दिखाएगी, ठीक कहेती हो बहेन! में भी ऐसा ही सोच रही थी। कोई सही लड़की तुम्हारी नजर में हो तो बताना कहकर झिनिबा अपने घर की और चल दी।
सारला की उम्र अब पचपन वर्ष हो गई थी। पिछले वर्ष ही उनके पाती का देहांत हो गया था। पति की कमाई बहोत कम थी। उससे मुश्किल से ही गुजारा होता था। पाती कोई बैंक बैलेंस छोड़कर नहीं गए। जो थोडा बहोत पैसा था वो अंत समय में उनके इलाज में ही खर्च हो गया था। वो तो ऊपर वाले का शुक्र है की 100 गज का एक पुराना मकान खरीद लिया था। कम से कम सर छुपाने के लिए अपनी खुद की छत तो हो गई थी। वर्ना दर दर की ठोकरे खानी पड़ती। महेश भी केवल ग्रेजुएट ही था। मात्र आठ हजार रुपैये मासिक की प्राइवेट नौकरी कर रहा था।
आजकल की महगाई के दौर में इतनी रकम से गुजारा चलाना बहुत मुश्किल काम था। मगर उन्होंने जैसे तैसे घर चला रहे थे। सम्पन्नता के अभाव के कारन ही महेश 30 साल का होने के बाद भी महेश की शादी नहीं हो पा रही थी। सभी लड़की वाले उसकी कम तनख्वा जानते ही रिश्ते की बात से कदम पीछे खीच लेते थे। वैसे महेश एक महेनती और समझदार लड़का था। और इसमे किसी तरह की कोई बुरी आदत भी नहीं थी। हर महीने की पहेली तारीख को सारी तनख्वा माँ के हाथ में थमा देता था। वो अपने लिए कुछ भी नहीं रखता था।
अब महेश की नौकरी लग ने के बाद आर्थिक हालत पहले से सुधर जायेगे। ऐसा सोचके झिनिबा को सुकून महसूस होता। वर्ना गरीबी और पति की बिमारी की चिन्ता में घुल घुल कर वो शुगर की मरीज बन चुकी थी।
अगले ही दिन मंथरा अपनी सगी बहेन की बेटी झिनिबा का रिश्ता लेकर झिनिबा के घर आ गई। नेक काम में देरी न हो जाए इसलिए मै आज ही आ गई मंथरा ने कहा। लड़की सिर्फ आठवी तक पढ़ी है दहेज़ में भी ज्यादा उम्मीद मत करना। हा तुम्हारी और महेश की सेवा अच्छे से करेगी। तुम्हे सिकायत का कोई मौका नहीं देंगी। लड़की की फोटो देकर जा रही हु। शाम को महेश से बात कर लेना और फोटो को भी दिखा देना। थोड़ी देर रुकने के बाद मंथरा अपने घर लौट गई।
शाम को जब महेश नौकरी से लौटा तो चाय पिने के बाद झिनिबा ने महेश को कमला की फोटो दिखाई। और कहा- अब मुझसे घर और रसोई का काम अकेले नहीं संभालना। तू जल्दी से हा कर दे और इससे शादी कर ले। में वैसे भी बीमार रहेती हु इसलिए ज्यादा सोच विचार मत करना। महेश ने फोटो देखी तो उसे ठीक ही लगी। परतु जब उसे पता चला की लड़की आठवी पास है ती उसने मना कर दिया। माँ आज के ज़माने में पढाई लिखाई बहोत जरुरी है। में इस लड़की से शादी नहीं करूँगा। झिनिबा ने बहोत समझाने की कौशिश की मगर महेश नहीं माना, तो फिर में मंथरा से मना कर दू उसको बहोत बुरा लगेगा। हा, मना कर दो माँ कहकर महेश अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन झिनिबा ने मंथरा से महेश से शादी से इनकार की बात बता दी। मंथरा का मुह बन गया। बोली मै तो तुम्हारे भले के लिए ही सोच रही थी। तुम अपने बेटे के हिसाब से ही लड़की देख लों फिर हमसे न कहना,
सास बहु
कुछ दिन बाद महेश के लिए एक पढ़ी लिखी लड़की का रिश्ता आया। लड़की प्राइवेट स्कूल में टीचर थी। गरीब परिवार की थी और बड़ा दहेज़ देने का सामर्थ्य नहीं था। महेश इस रिश्ते के लिए सहर्ष तैयार हो गया। झिनिबा बहोत परेशान थी। उसने महेश को बहोत समझाया की तुम गलती कर रहे हो हाई स्कुल पास या इन्टर पास लड़की ही बहोत थी। तुम तो अपने से भी ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की लाने के इए तैयार हो तुम बिकोम हो और वो एमएससी। वो कल तुम्हारी बात न सुने तो फिर मुझसे कुछ मत कहेना। वो नौकरी करेगी या घर के काम संभालेगी। कही अपनी रोटी भी अपनी बीमार माँ से तो नहीं पकवाएगी। झिनिबा तरह तरह की बाते सोच के व्याकुल हो रही थी।
आखिरकार महेश की जिद के आगे झिनिबा को झुकना पड़ा और शादी तय हो गई। मंथरा को पता चला तो ताना मारने लगी । बहेन मुझे तो लगता है तुम्हे बुढ़ापे में भी कष्ट उठाना पड़ेगा। नौकरी वाली लड़की कही तुम्हे महेंगी न पड जाए। झिनिबा चुप रह गई।
आखिर महेश की शादी मीना से हो गई। झिनिबा शुरू से ही मीना से काटकर रहेती थी। उसे डर लगता था की कही मंथरा की बाते सच न हो जाए। मीना ने आते ही घर का सारा कामकाज खुद ही सम्भाल लिया। वो सुभह स्कुल जाने से पहेले सबका नाश्ता और महेश का टिफिन बना के जाती सबकुछ ठीक चल रहा था। मंथरा को पता चला तो बोली, अभी तो नई नई है। बहोत जल्दी तुम्हे अपना रंग दिखाएगी। धीरे धीरे तिन महीने गुजर गए। झिनिबा आशंकित रहेती थी मगर मीनाने एक बार भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था।
एक दिन झिनिबा की तबियत अचानक ख़राब हो गई। वो घर में अकेली थी, उसने बड़ी मुश्किल से महेश को फोन मिलाया। महेश बोला में अभी पहोच रहा हु, जब वो घर पहोचा तो झिनिबा बेहोश पड़ी थी। उसने जल्दी से लोगो की मदद से उसने निकटतम अस्पताल में भारती करवाया। डॉक्टर ने झिनिबा की सारवार की, थोड़ी ही देर में मीना भी स्कुल से सीधी अस्पताल पहोच गई। क्या हुआ माजी को उसने पहोचते ही महेश को पूछा, पता नहीं डॉक्टर ने कुछ बताया नहीं बस ग्लुकोझ लगा दिया है। बोला है की एक दो घंटे में ठीक हो जायेगी।
मीना वही बैठ गई अचानक उसे कुछ याद आया आपने डॉक्टर को माजी की सुगर की बिमारी की बात बताई या नहीं, डॉक्टर ने मुझे कुछ पूछा ही नहीं तो मै बताता कैसे। मीना तुरंत उठी और डॉक्टर के पास भागती हुई गई। और डॉक्टर से कहा सर माजी को सुगर की बिमारी है। क्या माजी की सुगर की जाँच हुई है? डॉक्टर ने कहा की ये तो उनके बेटे ने मुझे बताया ही नहीं डॉक्टर ने फटाफट नर्स को बुलाकर सुगर टेस्ट करने को कहा- जब नर्स ने सुगर चेक किया तो पता चला की माजी का सुगर काफी ज्यादा बढ़ा हुआ है। डॉक्टर ने तुरंत ग्लुकोझ की बोतल हटवा दिया और इन्सुलिन के इंजेक्शन लगवाये। डॉक्टर ने महेश से कहा की आप को मुझे डायबिटीस वाली बात बतानी चाहिए। असल में सुगर बहोत बढ़ जाने से उनकी तबियत ख़राब हुई थी। और फिर हमने भी ग्लुकोझ लगा दिया था।
अगर आज आपकी पत्नी यहाँ नहीं होती तो इनकी जान भी जा सकती थी। महेश ने कृतग्य नेत्रों से मीना की तरफ देखा। कुछ घंटो के बाद झिनिबा की तबियत सुधर गई। एक दिन अस्पताल में रहने के बाद वो घर आ गई। महेश ने झिनिबा को सारी बात बताई। झिनिबा ने मीना को गले लगा लिया। बेटी में तुझे गलत समझती थी। आज मेरी साईंस पढ़ी हुई बेटी ने डॉक्टर से सवाल करके मेरी जान बचा ली।
सास बहु
आज से आपका मिठाई खाना बंध मीना ने घर में पहला हुक्म बहुत रौब के साथ दिया । झिनिबा को बिलकुल बुरा नहीं लगा।
सास बहु की कहानी समाप्त
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