स्वार्थ का संसार हिंदी कहानी, swarthi putro ki kahani

स्वार्थ का संसार हिंदी कहानी यह कहानी स्वार्थ के बारे में व्रिस्तुत जानकारी देंगी जो आपको पढ़ने से बहोत मझा आएगा।

स्वार्थ का संसार हिंदी कहानी

स्वार्थ का संसार हिंदी कहानी
स्वार्थ की कहानी

एक शाहुकार था। उसके चार पुत्र थे। शाहुकार ने अपने पुत्रो को विवेकशील समझकर समस्त व्यापार तथा घर की सारी सम्पत्ति उनको, अपने चारो पुत्रो को सौंप दी। सब कारोबार अपने पुत्रो को दे दिया, किसी कारणवश सेठानी का अचानक एक दिन देहांत हो गया। शाहुकार की भी बढ़ती उम्र की वजह से शारीरिक शक्ति क्षीण हो रही थी और आँखों की रोशनी में भी फर्क पड़ गया। घुटने में दर्द का दुखावा होने के कारण शाहुकार पूरा दिन आंगन में ही लेटा रहता था।

एक दिन शाहुकार के चारों पुत्र-वधुओं ने अपने-अपने पति को कहा-‘पतिदेव! हम तो ससुर की सेवा-चाकरी करते-करते थक गई है, हमसे इनकी सेवा करने का समय नहीं मिलता। और यह बुढ़ा सारे दिन आंगन में थूकता रहता है, सफाई करने के लिए हमारे पास समय नहीं है । हमें अपने बाल-बच्चों की सार-सम्माल करनी पड़ती है और घरेलू कार्य भी बहुत रहता है, अतः आप जानें और आपका बाप जाने, हमारा यह बूढ़ा क्या लगता है ?

 चारों ही भाई पिता के पास आये और बोले-‘पिताजी, आप सारे दिन आंगन को क्यों बिगाड़ते हैं, यह अक्छा नहीं है।’

पिता ने कहा-‘पुत्रो! बाहर जाने की मुझमें शक्ति नहीं है और थूके बिना रहा नहीं जाता क्या करू?’

आखिर चारों पुत्रों ने पलंग सहित पिता को उठाकर बाहर आँगन से भी बहार में डाल दिया और कहा-‘पिताजी ! अब खूब आनन्द से थूका करो, कुछ भी, कोई भी रोकथाम नहीं है।’

 शाहुकार बड़ा दुःखी हो गया ।

 समय पर खाना मिलना भी कठिन हो गया। जो मिलता, वह भी तीन दिन का रूखा-सूखा। शाहुकार ने सोचा-हाय ! यदि मैं सारा वैभव और कार्यभाल पुत्रों को नहीं सौपता तो आज मेरी ऐसी दशा क्यों होती? अब शाहुकार का एक – एक दिन एक-एक वर्ष के समान व्यतीत होने लगा।

एक दिन शाहुकार का पुराना मित्र सुनार शाहुकार से मिलने के लिए आया । उसने दुःख-सुख की बातें पूछते हुए कहा’ शाहुकार साहब ! आजकल तो आप काफी कमजोर लग रहे हो। शरीर भी काला पड़ गया है, दाढ़ी मुछ भी लम्बे-लम्बे बढ़ चुके है, आपको किस बात की चिंता सता रही है? इसका क्या कारण है ??

शाहुकार ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा- ‘मित्र ! इधर तो बुढ़ापे में सेठानी का स्वर्गवास हो गया, उधर चारो ही पुत्र बड़े स्वार्थी निकले। सेवा-चाकरी की तो बात बहोत दूर रही, रोटी की भी समस्या हो रही है। मेरा एक-एक दिन बड़ा दुख में जा रहा है। क्या करू ?’

सुनार बड़ा चतुर था। उसने एक युक्ति सोची और शाहुकार को कहा- मित्र! कल मैं आपके पास छोटे-छोटे गोल पत्थरों से भरकर एक पेटी भेजूंगा। उसके दो ताले लगाये हुए होंगे, उस पेटी को आप अपने पलंग के नीचे ही रखना। अगर कोई आपसे पूछे कि इसमें क्या है, तो आप उत्तर देना कि इसमें सोने के आभूषण भरे पड़े है। इतने दिन तो यह पेटी मेरे मित्र के घर पर था, अब मैं मरणासन्न स्थिति में हूं, इसलिए मैंने आज ही मंगाई है।

आपके पुत्रों को इतना मालूम होते ही सब दौड़े-दौड़े आयेगे और आपकी सेवाभक्ति में जुट जायेंगे।’ सुनार अपने घर गया और उसने वैसे ही किया। पेटी आ गयी । शाहुकार ने अपने पलंग के नीचे रख दी। कुछ ही समय बाद देखते ही देखते चारों बहुओ को यह पता लगा कि शाहुकार के पास अभी तक काफी माल-ताल लेके रखा है। चारों ही दौड़ी— दौड़ी आई और पूछा-‘ससुरजी ! इस पेटी में क्या है ?’ ससुर ने कहा- ‘इसमें तरह तरह के स्वर्ण- आभूषण है। इतने दिन मेरे मित्र के घर थे, आज ही मैंने मंगवाए है।’

यह सुनते ही तुरंत चारों बहुएं शाहुकार की सेवा-भक्ति में जुट गयी । कोई बादाम का हलवा बनाकर खिलाती, कोई गर्म दूध पिलाती तो कोई ठंडा-ठंडा पानी लाकर हाजिर होती । इधर चारों पुत्रों को भी यह पता लगा कि बुड्ढे के पास अभी तक काफी धन सम्पत्ति है तो चारों ही पिताजी की सेवा में पहुंचे। पेटी को वजनदार को देख चारों ने हाथ जोड़कर विनय से कहा-‘पिताजी ! आपको यहां मच्छर काटते होंगे, सुख चैन की नींद भी नहीं आती होगी। कृपया ऊपर वाले कमरे में पधारें।’

पिता ने कहा-‘पुत्रो ! मुझे बार-बार थूकना पड़ता है, अत: मेरे लिए यही स्थान अनुकूल है।’ पुत्रों ने कहा, ‘पिताजी ! इसकी आप चिन्ता न करें। हमारे पास सभी प्रकार की व्यवस्था है।’ पुत्रो शाहुकार को ऊपर ले गये और तन, मन, धन से उसकी सेवा- शुश्रूषा करने लग गये।

शाहुकार बोला-‘पुत्रो ! मेरी पेटी मेरे पास ही रखना । जो अधिक सेवा करेगा, उसी को यह सोने के आभूशनो की पेटी दूंगा ।’ शाहुकार की जिंदगी अब बदल गई और वो सुखी हो गया। दुःख की घड़ियां उसकी समाप्त हो गयीं । और उसे सेवा पानी में कोई अब कमी नहीं थी। काफी वर्षो बाद शाहुकार की उम्र की ढलान से कुछ वर्षों बाद शाहुकार का स्वर्गवास हो गया।

 चारों ही भाइयों ने सोचा- चलो! अब तो उस पेटी को खोलें, उसमें क्या क्या माल निकलता है। चारो देवरानी- जिठानी भी मन में अनेक कल्पनाएं संजोती हुई पेटी के पास आ गयीं । सभी एकत्रित हो गए और धन की आशा में आँखे फाड़ रहे थे। आखिर पेटी को ताला तोड़के खोला गया। तब अन्दर निकले गोल-गोल काफी सारे पत्थर । सब दंग रह गये। शाहुकार को गालियां देने लगे-‘हाय ! ससुर ने कैसा जाल रचा? पहले पता होता तो क्यों इतनी सेवा-चाकरी करते और क्यों घर का माल गंवाते, किन्तु अब क्या ?’ ’

कहानी का सार 

सारा संसार स्वार्थ से भरा पड़ा है। जब तक स्वार्थ होता है तब तक सब दौड़-दौड़ कर आते हैं, किन्तु स्वार्थ के अभाव में कोई किसी को नहीं पूछता है, अतः इस स्वार्थ भरे संसार में धर्म ही सबका संरक्षक है।

 

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