bal kahani hindi mai – बच्चो के लिए कहानिया

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दोस्तों आज में आपके लिए एक खुबसूरत bal kahani hindi mai कहानी बता रहा हु जिसे आप पढ़िए और मज़े लीजिये और अपने दोस्तों को भी बताइए की बच्चो की मनपसंद कहानिया और शेयर भी कीजिये.बेहतरीन बाल कहानिया

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करे सो भरे, ऊंट और सियार की मित्रता की कहानी (1)


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ऊंट और सियार में परस्पर अच्छा प्रेम था। जंगल में प्रायः साथ ही घूमते थे। एक दिन सियार ने ऊंटसे कहा-“मित्र ऊंट! यदि तेरी इच्छा हो तो नदी के उस पार चलें।”

ऊंट-“क्यों भाई ! वहां क्या विशेषता है ?”

सियार-“वहां अपने को खाने के लिए काफी सामग्री मिल जायेगी, किन्तु नदी में पानी का बहाव होने के कारण मैं मेरे सहयोग के बिना अकेला नहीं जा सकता। चलो हरे-भरे खेतों में फल भी खा लेंगे और साथ-साथ सैर भी हो जायेगी।

सियार ऊंट की पीठ पर बैठ गया। दोनों रवाना हुए और उन खेतों में जा पहुंचे। खेत का मालिक सोया हुवा था। दोनों के मोज बन गई। खेत को तहसनहस करते हुए फल-फूल खाने लगे। सियार का पेट छोटा होने से शीघ्र ही भर गया।

सियार गोला–“मित्र ! मुझे तो बुलबुली आती है।”

अंट ने कहा”भाई ! अभी कुछ समय के लिए चुप रहना अन्यथा खेत का मालिक जग जायेगा, तो दोनों को मार खानी पड़ेगी।”

सियार से रहा नहीं गया। वह तो जोर-जोर से बोलने लगा। खेत के स्वामी की आँखे  खुली और हाथ में लाठी लेकर दोनों को मारने के लिए दौड़ा। सियार तो चालाक था। वह शीघ्र वहां से भाग गया किन्तु ऊंट को काफी मार बानी पड़ी । नदी के किनारे पर बैठा-बैठा सियार ऊंट की प्रतीक्षा कर रहा था। इतने में ही ऊंट आया।

सियार ने पूछा-“क्या बात है दोस्त?”

ऊंट बोला-“मित्र! आज तो उल्टे लेने के देने पड़ गये। अब तो कभी भी इस खेत में आना नहीं है। यदि तू तनिक समय के लिए मौन रख लेता तो मार क्यों खानी पड़ती?”

सियार-“खैर, जो हुआ सो हुआ। अव यहाँ मधिक समय लगाना अच्छा नहीं है। शीघ्र चलों। कही वह खेत का मालिक पीछे से आ जायेगा, तो फिर बहोत ही मार खानी पड़ेगी।”

दोनों ही चले । ज्योंही नदी के मध्य भाग में पहुंचे त्योंही

उट बोला-“मित्र सियार ! मुझे लो खटपटी आती है।

सिबार बडबडाता हुआ बोला-“भाई! अभी अगर तू पानी में नहायेगा तो, मुझे बेमौत मरना पड़ेगा। नदी में पानी बहुत है मैं तो डूब वाऊंगा। तू मेरा पुराना साथी है। मीत्रता निभाना तेरा परम कर्तव्य है। अतः अभी पानी में मत डूबना । नदी पार होने के बाद नहा लेना।”

ऊंट बोला-“दूसरों को उपदेश देना सरल है। मैंने कहा -पोड़ी देर के लिए चुप रहना, अब मै भी पानी में डुबकी लगाये बिना नहीं रह शकता तो मेरे से रहा नहीं जाता___ऊंट अपने इच्छित स्थान पर पहुंच गया, उस को कोई भी हानि नहीं हुई, किन्तु सियार बहते पानी में डूबकर मर गया। और पानी में बह गया

जो करता है वह भरता है, जो हंसता है वह रोता है, स्वयं को गल्ती का नुकसान स्वयं को ही उठाना पड़ता है। अतः कोई भी काम करना पड़े तो हर दृष्टि से सोच-समझकर ही करना चाहिए।

जैसी करनी वैसी भरनी

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होशियार तोता की कहानी (2)


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एक समय की बात है जंगल में एक तोता रहता था| वह बहुत सुन्दर था| उसकी चोच और पंख बहुत ज्यादा सुन्दर थे| उस तोते के साथ उसका छोटा भाई भी रहता था| वह दोनों जंगल में ख़ुशी ख़ुशी रहेते थे|

एक दिन एक शिकारी जंगल में आया| उसने तोते की इस जोड़ी को देखा और सोचा, “यह तोते बहुत सुन्दर और खास है| में इन तोतो को राजा को भेट करूँगा|’ उस शिकारी ने जंगल में अपना जाल बिछाया ताकि वह दोनों तोतो को पकड़ सके| जल्द ही दोनों तोते उस शिकारी की जाल में फस गए| उसने तोतो को अपने पिंजरे में रखा और अपने घर वापिस चला गया| उस शिकारी ने राजा से कहा,”ओह राजा! देखिये तोतो की इस सुन्दर जोड़ी को| मैंने इन्हें घने जंगल से पकड़ा है| इनकी सुन्दरता देखकर सोचा की मै इन्हें आपको भेट स्वरुप दू| यह आपके महल की खूबसूरती में चार चाँद लगा देंगा|’

राजा बहुत खुश हुआ bal kahani hindi mai

यह सुनकर राजा बहुत खुश हुआ| उसने शिकारी को हजार सिक्के इनाम में दिए| उस राजा ने दोनों तोतो को सोने के पिंजरे में रखा और आपने सेवको को उनकी देखभाल करने का आदेश दिया|

तोतो की बहोत अच्छे से देखभाल की जाती थी| उन्हें महल में बहोत महत्वपूर्ण पक्षियों की तरह रखा गया| उन्हें खाने में फल और स्वादिस्ट खाना दिया जाता था|सबकी नजर महल के तोतो पर रहती थी| बल्कि राजकुमार भी उस तोतो के साथ केलाने आता था| तोते बहोत खुस थे| उन्हें सब कुछ बिना महेनत से मिल रहा था| बड़े तोते ने अपने भाई से कहा,’हमें इस राजमहल में काफी इज्जत मिली है| इसलिए में पूरी तरह संतुष्ट हु|’

छोटे भाई ने जवाब दिया ,’तुम सही कह रहे हो | हमें एकदम राजसी सेवा मिल रही है |यह हमारी किस्मत है|’

एक दिन शिकारी कला बन्दर लेकर आया और उसने उसका नाम काला बहु रखा| वह बन्दर राजा को भेट किया गया| रजा ने आपने सेवको को बंदर को आँगन में रखने के लिए कहा| रजा और उनका बीटा यानी छोटा राजकुमार बंदर की हरकते देखकर बहुत खुस और हेरान हुआ करते थे| जल्द ही बंदर ने सभी को आपनी और आकर्षित कर लिया था|

अब कोई ध्यान नहीं देता था, बाल कहानी

बंदर से आने से तोतो पर अब कोई ध्यान नहीं देता था| कभी कभी तो उन्हें खाना भी कोई देता ही नहीं था| यानि उनपे किसीका ध्यान ही नहीं था| दोनों तोतो को इसका कारन पता था| बड़ा तोता होशियार था और उसे उम्मीद थी की जल्दी उनके दिन बदलेंगे इसलिए इन्हें उदास नहीं होना चाहिए | उसने आपने भाई को सांत्वना दी,’इस दुनिया में कोई चीज हम्मेसा के लिए नहीं होती| जब तक हमारे बुरे दिन क्खातं नहीं होते तब तक धीरज रखो|’

एक दिन बंदर राजकुमार के आगे कुछ पेश कर रहा था और उससे राजकुमार डर गया और वो चिल्लाया,’मेरी मदद करो, ‘मेरी मदद करो|’राजकुमार की आवाज सुनकर सभी उसके पास आ गए और वहा से राजकुमार को ले गए| जब राजा को इसका पता चला तो उसने अपने सेवको को आदेश दिया की वह बंदर को जंगल में छोड़ आये| तुरंत ही सैनिको बंदर को पकड़कर जंगल में छोड़ आये.

अब तोतो के बुरे दिन ख़त्म हो गए थे| उनकी फिर से खातिरदारी होने लगी| उनके लिए अच्छे और स्वादिस्ट पकवान बनाये जाते थे| वह फिर से सभी के आँख के तारे बन गए|

होशियार तोते ने आपने भाई को समझाया की समय हंमेशा एक जैसा जनही रहता इसलिए अगर हमारे साथ कुछ समय के लिए कुछ गलत हो रहा है तो उससे हमें घबराना नहीं चाहिए| छोटे तोते को महसूस हुआ की इस दुनिया में कोई भी चीज एक जैसी नहीं रहेती इसलिए हर किसी को धीरज रखना चाहिए|

इस दुनिया में कोई भी चीज एक जैसी नहीं रहेती इसलिए हर किसी को हर कम में धीरज रखना चाहिए|

बाल कहानी


टोपी बेचने वाला और बंदर की कहानी (3)


बंदर की कहानी

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एक बार एक टोपियो का व्यापारी अपनी टोपिया बेचने के लिए दूर किसी शहर की और जा रहा था। चलते चलते दोपहर हो गई। वह थक गया था। एक बड़े पेड़ के निचे उसने अपनी टोपियो की टोकरी अपने कंधे से उतारी और अपने खाने का डिब्बा खोला और भोजन करने लगा।

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बच्चो की मनपसंद कहानिया

जल्दी तो कोई थी नहीं, इसलिए उसने सोचा क्यों न थोड़ी देर आराम किया जाए। वह व्यापारी वही पेड़ के निचे लेट गया। और जल्द ही गहेरी नींद ने उसे घेर लिया। उसे क्या पता था की वह एक ऐसे पेड़ के निचे सोया हुआ है। जिसमे ढेरो बंदरो ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था।

बंदरो ने जब टोकरी में पड़ी हुई रंगबेरंगी टोपिया देखी तो उन्होंने टोपियो से खेलने का मन बना लिया वे एक एक करके सभी निचे आ गए। और सभी ने एक एक टोपी उठा ली और जल्दी ही सभी पेड़ पर चढ़ गए।

टोपी वालेकी आँख खुली जैसे ही उसकी नजर खाली टोकरी पर पड़ी उसके पैरो तले से जमीं निकल गयी। वह परेशां हो उठा। के उसकी सारी टोपियो कोई चोरी करके ले गया था। वह चिल्लाया हाय हाय में लुट गया बरबाद हो गया? कौन ले गया मेरी टोपियो को अब मेरा क्या होगा?

टोपी वाला बंदर

परंतु जैसे ही उसकी नजर उस पेड़ के ऊपर उठी तो हैरान रह गया। उसकी सारी टोपिया तो बंदरो ने पहेंन रखी थी। उसने गुस्से से अपने हाथो को ऊपर किया ताकि डरकर बन्दर अपनी टोपिया निचे फैक सके परंतु ऐसा कुछ न हुआ ।

और बन्दर भी उसकी नक़ल करके उसे चिढ़ा रहे थे। इससे उसके दिमांग में एक तरकीब सूझी । पहले उसने अपने हाथो को हिलाया उसी तरह बन्दर भी अपने हाथ हिलने लगे । फिर वो ऊपर निचे कूदने लगा बन्दर तो नकलची होते ही है। बन्दर भी ऊपर निचे कूदने लगे, फिर उसने अपनी टोपी सर से उतारी और जोर से उसे जमीं पर फैक दिया। फिर क्या था।

सभी बंदरो ने उसकी नक़ल की और अपनी अपनी टोपी को उन्होंने भी जमीन पर पटक दिया । टोपी वाले ने सारी टोपिया इकठ्ठी की और वापिस अपनी टोकरी में डाल दी और फिर अपने रस्ते चल पड़ा।

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सिक्षा: संकट आने पर ठंडे दिमांग से सोचो और समस्या को सुलझाओ । समस्या से भागो नहीं ।

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कौआ और लोमड़ी की दोस्ती (4)


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एक घने जंगल मे एक कौआ और लोमड़ी रहती थी। दोनो में गहरी दोस्ती थी। वे दोनों जहा भी जाते थे साथ जाते थे। वे जो खाते थे, वे साथ मे कहते थे इतना ही नही कौआ को अगर कोई अच्छी चीझ मिलती थी। तो वह लेकर आता था और लोमड़ी और कौआ साथ मे बैठकर खाते थे।

उसी जंगल मे एक सियार रहता था। सियार को उनकी दोस्ती देखकर बहुत जलन होता था। वे सोचता था कैसे इन दोनों की दोस्ती तोड़े, वे दिन रात बस इसी सोच में डुबा रहता था।

एक दिन सियार रात भर सोचा तो उसे एक आइडिया आई। वह सुबह ही लोमड़ी के पास अनजान बनकर गया और बोला कि लोमड़ी भाई तुम मुझसे दोस्ती करोगे। लोमड़ी उसे देखने लगी। फिर से सियार बोला मैं इस जंगल मे नया हु मुझे कोई नही जानता है। क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी। इतना सुनते लोमड़ी बोली तुम पहले चलो नेरे साथ मेरे दोस्त के पास। मुझे उनसे पूछना पड़ेगा वो बोले हा, तो मैं तुमसे दोस्ती करोगी।

फिर वह कौआ के पास गए और कौआ से लोमड़ी सारि बात बताई। तब कौआ बोला हमे किसी पर ऐसे ही बिस्वास नही करनी चाहिए। फिर लोमड़ी बोली क्या मैं तुम्हे जानती थी फिर भी हैम दोनो दोस्त बने, वैशे ही हम भी इसे अपना दोस्त मान लेते है। कौआ बोला ठीक है। फिर तीनो दोस्त बन गए।

सियार के बुरे विचार

एक दिन की बात है जब कौआ कहि चला गया तो सियार ने सोचा, यही मौका है। कौआ और लोमड़ी को अलग करने का सियार लोमड़ी के पास गया और बोला लोमड़ी भैया अपने बगल वाला जंगल मे बहुत मीठा मीठा फल है। चलो न हम वहा से कुछ फल खाकर आते है। लोमड़ी बोली ठीक है। चलो! दोनो एक फल के खेत मे गए दोनो फल खाने लगे।

तभी सीकरी आया और लोमड़ी पर जाल फेक दिया यह देख सियार बहुत खुश हुआ। और सोचा अब यह मर जाएगी। तो हमे खाने को मिलेगा। यह सोचते सोचते वह बहुत खुश हुआ और एक बड़ा सा पत्थर के पास जाकर छुपकर लोमड़ी और देखने लगा।

तभी कौआ उसी रास्ते से घर जा रहा था। कौआ ने लोमड़ी को दोखा और लोमड़ी के पास गया। और सारी बात पूछा लोमड़ी ने सारी बात बताई उसके बाद कौआ ने लोमड़ी को एक उपाये बताया।

तू मरने की एक्टिंग करना जब तुम्हे मरा हुआ शिकरी समझ लेगा तो तुम पर से वह जाल हटाएगा। जैसे वह जाल हटाएगा वैशे तुम तेजी से भाग जाना।

अब इधर सियार के मन मे लडू फूटने लगा वह सोचने लगा, अब जाल निकलेगा। तभी शिकारी आया और लोमड़ी को मरा देखकर वह जाल उठाया। जाल उठाते ही लोमड़ी भाग गई। भागता देख शिकारी उस पर बरक्षी चलाई बरक्षी लोमड़ी को न लगकर सियार को लग गया। सियार बेचारा मार गया।

अब लोमड़ी औऱ कौआ दोनो साथ चले गए।

बाल कहानी इन हिंदी

सिख: किसीके साथ बुरा न करना चाहिए। तब हमारे साथ भी बुरा नहीं होगा।


  शैतान मेढ़क की हिंदी बाल कहानी (5)


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एक गांव में एक तोता और एक मेढ़क रहते थे। दोनो दोस्त थे। एक दिन मेढ़क को रोटी खाने का मन किया। मेढ़क तोता से बोला तुम कहि से आटा ले आओ मैं रोटी बनाऊंगा। और दोनों मिलकर खायेंगे।

तोता आटा लाया। मेढ़क ने आटे का एक रोटी बनाई। जब तोता ने रोटी मांगी तो मेढ़क को लालच हो गया। उसने बोला मैं एक रोटी तुम्हे कैसे दु। उनसे यह कहकर उसने रोटी खा ली। और तोता को भी खा गया।

अब मेढ़क को प्यास लगी वह कुवे के पास गया। वहा पानी भरने वाली से पानी पिलाने को बोला। पानीभरने वाली ने पानी नही पिलाया।

तब मेढ़क बोला

सात सेर के लिटि खाई,

सुग्गा संग मिटी खाई,

तोहरा को खाते कितनी देर।

इतना कह उसमे पानीभरने वाली को भी खा लिया। और आगे बढ़ा तो उसने एक बारात को आते देखा। उसने बारात को रोका ।

और बोला मैं दुल्हा बनुगा। बाराती हसने लगे और मारने की बात की। भीड़ को मेढ़क ने गुस्सा होकर बोला,

सात सेर के लिटि खाई,

सुग्गा संग मिट्टी खाई,

पानिभरणी वाली को खाई,

तोरा खाते कितनी देर…

यह कहकर उसने सारे बाराती को खा लीया।

वहाँ से आगे बढ़ा तो उसे एक हजाम मिला। मेढक ने कहा,” ये हजाम हमार दाढ़ी बना दो। हजाम हाँ हाँ आइये। जैसे ही मेढ़क दाढ़ी बनाने बैठा। हजाम ने अस्तरा से उसकी पेट को चिर दिया। और एक एक कर के उसने सबको बाहर निकाला। और मेढक मर गया। इस तरह मेढ़क की शौतानी का अंत हुआ।

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चालाक मित्र से बचें (6)


Dhokebaaz Mitra Kahani In Hindi

किसी वन में एक ऊँट और गीदड साथ-साथ रहते थे। गीदड़ ने ऊँट से कहा, कि आओ मित्र खेती करें। ऊँट ने कहा, बहुत अच्छा। फिर दोनों ने मिलकर मूंगफली की खेती की। जब खेत पक कर तैयार हो गया,

तब ऊँट से गीदड बोला,अच्छा अब बटवारा कर लो।

ऊँट बोला, तुम ही बाँट दो, जो दे दोगे वह ले-लूँगा।

गीदड़ ने कहा कि हम जड़ ले लेते हैं और तुम ऊपर का भाग ले लो, क्योंकि तुम बडे हो, बस मूंगफली का उपरका भाग पत्ते ऊँट को देकर मूंगफली गीदड़ ने ले लिए।

अगले वर्ष फिर उन दोनों ने मिलके खेती की, ठहरी और गेहूँ बोए। जब बाँटने का वक्त आया। तब गीदड बोला लो भाई पहिले हमने नीचे का भाग ले लिया था, इस बार आप को दिए देते हैं।

गीदड़ ने ऊंट को भूसा देकर खुद गेहूँ ले लिये। ऊँट अपने सीधे स्वभाव से दोनों बार घाटे में रहा। गीदड़ ने चालाकी से दोनों बार नफा उठाया।

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शिक्षा-चालाक आदमी से दोस्ती करने पर सदा नुकसान रहता है।


 जिसका काम उसी को छाजे (7)


खेडूत और व्यापारी में परस्पर अच्छी दोस्ती थी। खेडूत खेती करता था। बनिया अपने व्यापार में मस्त रहता था। वर्षा नहीं होने से खेडूत बड़ा चिंतित रहने लगा। खेती हुए बिना परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा?

एक दिन वह अपने मित्र व्यापारी के पास गया और बोला-मित्र! तेरी कमाई हरदिन होती है, मैं आज-कल बिलकुल बेकार बैठा हूं, कोई आय नहीं है। कमाई का कोई साधन हो तो मुझे बताना ।

सेठ बोला-मेरा खास व्यापार है बबूल के गोंद का। यहां गोंद काफी सस्ता मिलता है। सस्ता है। दूसरी जगह का भाव तेज है। कमाई अच्छी होगी।

खेडूत ने सौ रुपयों का गौद लेकर रख लिया। उसने सोचा, कोई थोक का ग्राहक आयेगा तो बेच दूंगा।

इधर वह बनिया ज्यो ही गोद मेता त्यों ही बेच देता।

कुछ ही दिनों पश्चात् जोर से वर्षा हुई, जिससे गोंद खराब हो गया । इधर भाव भी उतर गये। गोंद का बाजार बिलकुल मन्द हो गया।

खेडूत दौड़ा-दौड़ा व्यापारी के पास आया और बोला- भाई साहब ! गजब हो गया । आखीर व्यापारी ने सारा माल ले लिया और सौ के तीस रुपये दिये। व्यापारी मे खेडूत को ठग लिया। बचारा हाथ मलता ही रह गया ।

__ जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में दक्ष होता है, उसी में सफल होता है। जिसका जिसे अनुभव नहीं होता वह काम करने से आखिर पछताना पड़ता है।


bal kahani hindi mai,  राजा और बन्दर की कहानी (8)


एक अध्यापक था। वह बंदरो को शिक्षण देने में बड़ा निपुण था। बंदरो को प्रसिक्षित करके बेचना उनका व्यवसाय बन चूका था।

एक दिन वही अध्यापक राजदरबार में अपने एक बंदर को साथ लेकर पहोचा।

राजाने पूछा- वाकई ये बन्दर शिक्षित है?

वह बोला- हा! महाराज यह बन्दर को प्रसिक्षण देंते हुए पांच बरस हो चुके है विनम्रता से कहा, ये बन्दर प्रत्येक कला में माहिर है।

राजा ने उस बन्दर की थोड़ी बहोत परीक्षा की जिसमे वह बन्दर सफल हुआ, और राजा बहोत इस बन्दर से प्रभावित हुआ और राजा ने उस अध्यापक को बन्दर की दुगनी रकम देके खरीद लिया।

अब बन्दर और राजा एक साथ हर घडी रहेने लगे। अगर राजा कही भी जाता तो बन्दर को साथ में ही लेके जाता, और बन्दर भी राजा के साथ ही जाता, कुछ समय बीत जाने के बाद राजा और बन्दर में एक दुसरे प्रति वफादारी का भरोसा हो गया। वो ख़ुशी ख़ुशी मस्ती भी करते थे और बन्दर राजा की हर आज्ञा मानता था। और राजा का बहोत ही वफादार था। वो दोनों एक दुसरे की रक्षा के लिए जान देने के लिए भी तैयार थे।

वह बन्दर तन मन से राजा की सुरक्षा भी करता था। इस से राजा को पूरा विश्वास हो गया की यह वास्तव में मेरा बहोत ही अच्छा सेवक है।

 

एक दिन बन्दर, बच्चो की कहानिया

एक दिन राजा सो रहा था। बन्दर हाथ में नंगी तलवार लेकर राजा की सुरक्षा में पहरा दे रहा था। राजा के आस पास एक मख्खी घूमने लगी और बन्दर उसे भागने की काफी कौशिस कर रहा था। पर वो भागी नहीं, मक्खी इधर उधर घुमती हुई राजा के गले पर बैठ गई। जिससे बंदर को बहोत गुस्सा आया और वो मक्खी को मारने के लिए तलवार चला दी। मक्खी तो कही उड़ गई लेकिन राजा की गर्दन कट गई। और राजा के प्राण पंखेरू उड़ गए।

वह बन्दर शिक्षित था। परंतु उसमे मनन और चिंतन नहीं था। जिसका दुस्परिनाम राजा को जान देकर भोगना पड़ा।

सिक्षा: अच्छे विचार और अनुभव के अभाव में शिक्षा व विद्या भी घातक सिद्ध होती है।

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भोजन का प्रभाव- (9) small bal kahani


एक साधू महात्मा था। वह हामेश के लिए जंगल में वृक्ष के निचे छोटी सी झोपड़ी बना के रहता था। वहा जंगल में एकांत में उसे जो आनंद की अनुभूति होती थी वैसे शहर में नहीं होती थी।

एक दिन एक चोर जंगल की शेर करते करते उस साधू को देखा। और पास में आके निवेदन करते हुए कहा- महात्माजी! आप मेरे घर पधारिये और वहा रहिये। यहाँ जंगल में आपको भोजन एवं काफी समस्याओ का सामना करना पड़ता होगा।

महात्मा, चोर के आग्रह को टाल न सका। वह उनके घर में उनके साथ पहुंच गया। वहाँ रहने लगा। वहा रहते रहते तीन महीने बीत गये।

एक दिन का किस्सा है कि चोर की पत्नी पास की नदी में स्नान करके वापस लौट गई, किन्तु मोती का हार नदी के किनारे भूल गई।

उस से थोड़ी देर बाद महात्मा स्नान करने हेतु वहां पहुंच गया। हार को देखते ही महात्मा का दिल बदल गया। और वो महात्मा हार को चुराकर जंगल में चला गया।

महात्मा का मन परिवर्तन

महात्मा को भूख लगी हुई थी। उसने ऐसे फल खाये, जिससे जुलाब होने लगा। पेट साफ हो गया। विचारों में परिवर्तन होने लगा।

अब वह मन ही मन सोचने लगा- अरे ! महात्मा, क्या तू महात्मा है, चोरी करके हार ले आया, अब तू महात्मा नहीं है, तू उन्ही के जैसा चोर है। धिक्कार है तेरे जीवन को! ऐसा अकृत्य तेरे लिए उचित नहीं था।

वह दौड़ा-दौड़ करके उस चोर के घर आया। रात्रि का समय था । सब सोये हुए थे। जोर से बोलने लगा-अरे दोस्त ! यह हार लीजिये, आपका हार ।

चोर की आंखें खुली। बोला- क्या बात है?

महात्मा बोला- मैं आपका हार चुराकर ले गया था। उसे वापस देने के लिए आया हूं। चोर ने कहा-वापस देना ही था तो लेकर तू गया ही क्यों?

महात्मा ने कहा- भाई ! तीन महीने तक आपके घर का बनाया हुआ अन्न मैंने मुफ्त में खाया, जिससे मेरी बुद्धि भ्रस्ट हो गई। विचारों में विकृति पैदा हो गई।

हार चुराकर ले गया। जंगल में पहुंचा। फल खाये। जुलाब होने लगा। पेट साफ हुआ। विचारों में सद्बुद्धि जागृत हुई। तब मुझे ज्ञान हुआ कि विचारों पर भोजन का इतना प्रभाव पड़ता है।

यह उक्ति भी सिद्ध हुई – जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन

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