beti bachao beti padhao, बेटी की शादी एक कहानी

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बेटी की शादी एक कहानी , beti ki shadi ek emotional heart touching story

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ये बात आज से बीस वर्ष पहले की है। मास्टर दीनानाथ एक छोटे शहर के सरकारी स्कुल में मास्टर थे। उनकी पत्नी का नाम कल्पना था। इश्वर की कृपा से मास्टर जी के पास एक पुत्र और एक पुत्री थे। पुत्री का नाम सुष्मा तथा बेटे का नाम नरेश था। कुल मिलकर एक छोटा सा खुशहाल परिवार था। जीवन में कोई परेशानी नहीं थी।

सरकारी नौकरी के कारण इतनी आय हो जाती थी की जीवन के खर्चे आसानी से निकल सके। सुषमा बारहवी कक्षा में पढ़ रही थी और नरेश अभी आठवी कक्षा में पढ़ रहा था। सुषमा को जवानी की दहलीज पर देख कर मास्टर जी और उनकी पत्नी ने उसके विवाह के सबंध में सोचना प्रारंभ कर दिया था। उन दिनों लडकिया की शादी कम उम्र में ही कर देने का रिवाज था। सुषमा पढने में नरेश से अधिक बेहतर थी। तथा दसवी में भी प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुई थी।

उसका आगे पढ़ने का बहोत मन था। मगर माता पिता उसकी शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे। बारावी कक्षा में भी सुषमा उतीर्ण हुई। उसी वर्ष मास्टरजी ने उसका विवाह अपने एक रिश्तेदार द्वारा बताये गए एक लडके के साथ तय कर दिया। लडके का नाम गोकुल था।

गोकुल अपने माता पिता की इकलोती संतान था। वो एक छोटा व्यवसाय करता था तथा थोड़ी बहुत पुश्तेनी जमीन भी थी। कुछ ही दिन में विवाह संपन्न हो गया तथा सुषमा अपनी ससुराल पहुच गई। मास्टरजी और उनकी पत्नी ने चैन की सांस् ली की चलो जिम्मेदारी पूर्ण हो गई। धीरे धीरे एक वर्ष बित गया। सुषमा अपनी ससुराल में ठीक से रह रही थी। उसी वर्ष सुषमा ने एक लड़की को जन्म दिया। सुषमा की सास को अच्छा नहीं लगा। वो पोते का मुख देखने के लिए लालायित थी परंतु यहाँ तो लड़की का जन्म हुआ था।

एक दिन मास्टर जी जब अपनी बेटी को मिलने गए तब सुषमा की सास ने अपने मन की बात उनसे भी कह सुनाई। हम तो लडके की आस लगाये बैठे थे पर एसा नहीं हो सका। गोकुल के पिता ने समझाया की कोई बात नहीं लड़की भी बागवान की ही देन है। अगले वर्ष लड़का भी जरुर हो जाएगा। मास्टर जी चुपचाप सुनकर घर वापस लौट आये। धीरे धीरे एक वर्ष और बित गया।

सुषमा एक बार फिर गर्भवती थी। सुषमा की सास ने पोते की आस में पूजा पाठ और दान पूण्य में कोई कमी नहीं करी थी। उसको पूरी उम्मीद थी की अब की बार लड़का ही होगा। परतु इश्वर ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी और दूसरी बार भी लड़की हो गई।

जब मास्टर जी अबकी बार मिलने गए तब सुषमा की सास ने उनके सामने ही सुषमा को  कोसने लगी। गोकुल हामारा एकलौता लड़का है। हमने तो सोचा था की आपकी लड़की हमारा वंश आगे बढ़ाएगी पर ये तो लड़की ही पैदा करना जानती है। हमारी तो किस्मत ही फूट गई है। मास्टर जी ने समझाने का प्रयास किया की इन बातो में भगवान की ही मर्जी चलती है। इसमे सुषमा का कोई कसूर नहीं है। परतु उसकी सास कडवे शब्द ही बोलती रही। मास्टर जी भारी रदय के साथ घर वापस लौट आये।

कुछ समय और बित गया। एक बार सुषमा घर आई त्यों अपने माता पिता के सामने फुट फुट कर रोने लगी। उसकी सास ने ताने मार मार के उसका जीना मुश्किल कर दिया था। पती भी अब पहले जितना प्रेम नहीं दिखाते थे। कभी कभी गुस्से में हाथ भी उठाने लगे थे। सिर्फ उसके ससुर थे जो उसको हिम्मत देते रहेते थे और दो मीठे शब्द बोल देते थे, परंतु सास के सामने ससुर की भी चलती नहीं थी। कुल मिलाकर सुषमा खुश नहीं थी।

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कुछ दिन बाद सुषमा तीसरी बार गर्भवती हो गई। इस बार सुषमा की सांस ने ईश्वर को प्रसन्न करने के दोगुने प्रयास किए हुए थे। साधु महात्माओं के बताए हुए सभी उपाय उसने पूर्ण किए थे। कई तरह के ताबीज भी बांध दिए थे, मास्टर जी और उनकी पत्नी भी इस बार ईश्वर से हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे, कि सुषमा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो जाए। धीरे-धीरे सुषमा के प्रसव का समय नजदीक आने लगा। सबके दिलों की धड़कन तेज थी। परंतु इस बार भी उनके मन की मुराद पूरी नहीं हुई।

सुषमा ने तीसरी बार एक लड़की को जन्म दिया था। पूरे घर में मातम छाया हुआ था। इस बार जब मास्टरजी सुषमा के घर मिलने पहुंचे तो उसकी सास आग बबूला हो रही थी। मास्टर जी को जलपान को भी नहीं पूछा गया। सुषमा की सास, जी भर के उसको गालियां दे रही थी। मास्टरजी सुषमा को झूठा दिलासा देकर अपने घर लौट आए।

कुछ दिन बाद पता चला कि सुषमा के ससुर गंभीर रूप से बीमार हैं। उनका एक से एक अच्छी जगह इलाज करवाया गया। परंतु कोई भी लाभ नहीं हुआ। उनके इलाज में जो थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी बिक गई थी। एक दिन ऐसा आया जब वह स्वर्ग सिधार गए। उनके जाने के बाद सुषमा के और भी बुरे दिन शुरू हो गए। जब तक ससुर जीवित थे तो सुषमा को उनका सहारा था। तिनके का ही सहारा था परंतु डूबते के लिए तो वही काफी होता है। अब तो सांस उसको पानी पी पीकर कोसते थी।

गोकुल अब शराब पीने लगा था। छोटी से छोटी बात पर सुषमा पर हाथ उठाने लगा था। जमीन तो विक ही चुकी थी उसका व्यवसाय भी अब अच्छा नहीं चल रहा था। सुषमा जितनी रोटियां नहीं खाती थी उससे कई गुना अधिक गालियां खाती थी। सांस उसको और उसकी लड़कियों को मनहूस कहती थी। तथा घर में गरीबी बढ़ने के लिए उसको ही दोष देती थी। सुषमा का जीवन नर्क बन चुका था ।

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एक दिन मास्टर जी से मिलने सुषमा के गांव से एक परिचित आये। उनसे सुषमा पर हो रहे अत्याचार के बारे में पता चला। मास्टर जी को सारी रात नींद नहीं आई। अगले दिन मास्टर जी सुबह-सुबह सुषमा के घर पहुंच गए। सुषमा को देखा तो पहचान ना सके, सुख के कांटा हो चुकी थी, तथा आंखों के नीचे काले गड्ढे साफ दिखाई दे रहे थे। बड़ी लड़की नाना का हाथ पकड़ के खड़ी हो गई। मास्टर जी ने कहा गोकुल बाबू आज मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं। आपकी लड़की के भाग्य से हम बर्बाद हो चुके हैं। अब क्या मांगने आए हो, गोकुल ने रुखआई से उत्तर दिया, मैं चाहता हूं कि आप अपनी दो लड़कियां मुझे शॉप दीजिए मैं उन्हें अपने साथ ले जाना चाहता हूं गोकुल ने कहा दो ही क्यों? तीनों को ले जाओ, उसको भी ले जाऊंगा मगर अभी वह बहुत छोटी है।

गोकुल की मा भी बोली- हां हां ले जाओ हमारा तो पाप कटेगा, सुषमा ने मास्टर जी को प्रश्न सूचक नजरों से देखा, मास्टर जी बोले- बेटी सोच कर रही है? तुझे भी तो मैंने ही पाला है। मास्टर जी के कहने पर सुषमा ने अपनी दोनों लड़कियों को उनके साथ रवाना कर दिया। 52 वर्ष की अवस्था में मास्टरजी अपनी लड़की की दो बेटियों को अपने घर ले आये। मास्टरजी की पत्नी हैरान रह गई। अभी उनको रिटायर होने में 13 वर्ष शेष थे। मास्टर जी ने कहा ये भी मेरा ही खून है।

मास्टर जी ने उनका स्कूल में दाखिला करवाया और पूरी तरह से जिम्मेदारी संभाल ली। दो साल बाद वह तीसरी बेटी को भी ले आए मास्टर जी का यह रूप देखकर जितने लोग भी उन्हें जानते थे वह स्तब्ध रह गए। मास्टर जी का सम्मान तो सब पहले से ही करते थे, पर अब वह सम्मान श्रद्धा का रूप ले चुका था। इसी बीच सुषमा चौथी बार गर्भवती हुई। इस बार ईश्वर ने उस को पुत्र रत्न प्रदान कर दिया था। उसकी सास ने पोते का मुंह देख ही लिया मास्टर जी बहुत धनी नहीं थे। उन्हें पता नहीं था कि वह इन लड़कियों की शादी कैसे कर पाएंगे। पर वह उनको पढ़ाते चले गए।

एक मास्टर के पास जान की दौलत ही तो होती है। मास्टर जी ने लड़कियों को पढ़ाना ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। लड़कियां भी पढ़ाई में अपनी मां की तरह ही तेज थी। तीनों ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होती रही, सबसे बड़ी लड़की ने बीएससी एमएससी पूर्ण कर लिया। फिर मास्टर जी का एक पूर्व छात्र जो शहर में प्रोफेसर बन चुका था। उसने अपने अधीन उस लड़की को पीएचडी पूर्ण करवाई। अब उस लड़की के नाम के आगे डॉ. लग गया। आज वो लड़की भी बड़े कोलेज में प्रोफेसर बन चुकी है। और उसकी शादी अपने साथ ही पीएच डी करने वाले एक लडके से हो गई। जहा पैसे की एक रुपैये की मांग भी लड़की की शादी में नहीं की गई।

दूसरी लड़की ने बहोत कम फीस पर एक सरकारी इंजिनियरिंग कोलेज से पढाई पूर्ण की आज वो देश की सबसे बड़ी कंपनी धीरुभाई अम्बानी की रिलायंस कंपनी में कार्यरत है। उसका विवाह भी एक कंपनी के ही सहकर्मी से बिना किसी दहेज की मांग के हो चुका है।

तीसरी लड़की भी एक अच्छे परिवार की बहू बन चुकी है। सुषमा की सास अब जीवित नहीं है। गोकुल अब पहले से संपन्न है और सुषमा अब उसके साथ और बेटे के साथ सुखी है।

मास्टर जी का निधन पिछले सप्ताह लगभग 80 वर्ष की आयु में हो गया। उनके साहस की और जो महान कार्य वह करके गए हैं। उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। उन्होंने बहुत सारे जीवन खराब होने से बचा लिए।

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