Chinnamasta Devi Story in Hindi: झारखण्ड में रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा, रजरप्पा में है माँ छिन्नमस्तिका देवी का भव्य मंदिर है । इस मंदिर का इतिहास 6000 साल पुराना है। कहते है की रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर महाभारत काल से भी पहले का है । और इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। और यहाँ हर साल लाखो श्रध्धालुओ बिना शिर वाली देवी का दर्शन करने आते है।
छिन्नमस्ता देवी की कहानी Chinnamasta Devi Story in Hindi
छिन्नमस्ता देवी स्टोरी
दस महाविद्याओ में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती है। छिन्नमस्तिका देवी को माँ चिंतापूर्ण देवी के रूप में भी जाना जाता है। देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्मग्रंथो में उल्लेख मिलता है। मार्कंडेय पुराण, वायु पुराण आदि में देवी के इस रूप का विशेष वर्णन किया गया है।
धर्मग्रंथो के अनुसार जब देवी ने चंडिका रूप धर के जब राक्षशो का संहार किया, दैत्यों को परास्त करके देवो को विजय दिलवाई तो चारो और उनका जयघोस होने लगा, परंतु देवी की सहायक योगिनिया अजया और विजयाकी रुधिर पिपासा शांत नहीं हो रही थी। इन पर उसकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काट कर अपने रक्त से उनकी भूख शांत की जिस वजह से इस माता को छिन्नमस्ता देवी के नाम से पुकारा जाता है।
माना जाता है की जहा पे भी माँ छिन्नमस्ता देवी का वास होता है वहा चारो और भगवान शिव का भी निवास होता है।
माँ छिन्मस्ता देवी की उत्पत्ति की कथा
भगवती भवानी अपनी दो सह्चर्यो के संघ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थी। स्नान करने पर दोनों सह्चर्यो को बहोत भूख लगी, भूख की पीड़ा से उनका रंग काला हो गया। तब सह्चर्यो ने भोजन के लिए माँ भवानी से कुछ खाने के लिए माँगा। माँ भवानी ने कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिए उनसे कहा। किन्तु वह बार बार भोजन के लिए हर्ट करने लगी। तस्पस्चात सह्चर्यो ने नम्रता पूर्वक माँ से अनुरोध किया की माँ तो अपने भूखे शिशु को अविलंब भोजन प्रदान करती है।
ऐसा वचन सुनते ही माँ भवानी ने अपने खडग से ही अपना ही शिर काट दिया और वो कटा हुआ शिर उनके बाये हाथ में आ गिरा और तिन रक्त धाराए बह निकली, इनमे से दो धाराओ को उन्होंने अपनी सह्चर्यो के और प्रवाहित कर दिया जिन्हें पान कर दोनों तृप्त हो गई। तीसरी धारा जो ऊपर की और प्रवाह कर रही थी। उसे देवी स्वयं पान करने लगी, तभी से माँ छिन्नमस्ता देवी के नाम से प्रख्यात हुई।
माँ छिन्न्मस्ते देवी की जयंती का महत्व, Chinnamasta Devi Story in Hindi
माँ की जयंती मनाने के कुछ दिन पहले ही जोरदार तैयारिया हो जाती है माँ के दरबार को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इस मौके पर दुर्गासप्तर्शी का पाठ का आयोजन किया जाता है। जिसमे श्रध्धालुओ सहित सभी भक्त भाग लेते है। इस दिन श्रध्धालुओ को लंगर परोसा जाता है। जिसमे तरह तरह के लजीज व्यजन शामिल होते है।
छिन्नमस्ता देवी चिन्ताओ का हरण करने वाली देवी है। माँ के दरबार में जो भी सच्चे मन से साधक आता है उसके मन की सारी मुरादे पूरी होती है।
दोस्तों … आपको यह देवी छिन्नमस्ता देवी की कहानी कैसी लगी comment करके हमें जरुर बताइयेगा.
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