dudh ka dudh pani ka pani: दूध का दूध पानी का पानी कहावत का अर्थ है इन दूधवाले की कहानी में बन्दर और दूध वाले की कहानी आपको पसंद आएगी.
दूध का दूध और पानी का पानी की कहानी
dudh ka dudh pani ka pani ,
लालची दूधवाले की कहानी
एक छोटे से गाव में एक आदमी ने काफी भेसे और गाये पाल रखी थी। वह आदमी हररोज दूध बेचने के लिए शहर में जाया करता था। वह आदमी जिस रस्ते से शहर में जाया करता था उस रास्ते पे एक पानी का तलाव भी था, और वही से वो आदमी हरदिन वही से गुजरता था।
एक दिन उन दूधवाला दूध बेचने के लिए शहर जा रहा था। और तालाब से पास रास्ते पे गुजर रहा था। तभी उनके मन में एक विचार आया की क्यों न में ईन पांच लीटर दूध में पांच लीटर पानी मिला दू, अगर में ऐसा करू तो मुझे इन पांच लीटर दूध के बदले दस लीटर दुध का पैसा मिलेगा। और मेरा यह काम कोई पकड़ भी नहीं पायेगा। क्योकि दूध में मिलाया हुआ पानी दूध में एक मेक हो जाएगा। और ठीक उसी दिन उसने ऐसा ही किया।
शहर के दूध लेने वाले लोगो का उस दूधवाले के प्रति विश्वाश था की यह दूधवाला हंमेशा अच्छा दूध ही लाता है, बिल्कुल भी मिलावट नहीं करता है। वो दूधवाला पहेले कभी भी मिलावट वाला दूध नहीं बेचता था, इसलिए उस विश्वासु दुधवाले के ऊपर किसी ने ध्यान नहीं दिया। धुधवाले का ज्यादा कमाई का काम अब चल पड़ा था। उनको अपनी बुरी बुध्धि पे बहोत गर्व था की इस दुनिया में मेरे जैसा दूधवाला कोई भी आदमी नहीं है। मै बड़े बड़े टोपी लोगो की आँखों में धुल झोक रहा हु।
अनैतिक दूधवाला
इंसान चाहे जितनी भी कपटाई करनी हो कर ले, लेकिन एक दिन उसका भांडा फूट ही जाता है। पाप का घड़ा फूटता है। सौ सुनार की एक लोहार की ‘ कहावत घटित होती है। दूध वाले का ऐसे पानी मिलाते हुए दूध बेचते बेचते एक महीना पूरा होते ही, उस दिन दूध वाले ने दूध का सारा हिसाब किया, और जहां जहां दूध बेचता था उन लोगों से पैसा लेकर उन रुपयों को कपड़ों में बांधकर एक थैली में रखकर अपने गांव की ओर जाने लगा।
5 लीटर दूध के बदले 10 लीटर दूध का पैसा बनाकर दूध वाला बहुत खुश था। वह पैसा लेकर खुशी-खुशी अपने गांव लौट रहा था। और सोच रहा था कि मैं ऐसे ही आगे भी दूध में पानी मिलाकर बेचना चालू रखूंगा। और ऐसे ही पैसे कमाता रहूगा। बहोत नफा मिलता है इसलिए बहोत मझा आता है।
ऐसा सोचते सोचते वह घर जा रहा था। मार्ग में वही तालाब आता, जिस के पानी से वह अपने दूध में पानी मिलाता था। घर जाते जाते वह दूधवाला तालाब पर रुका. और अपने पैसों की थैली एक पेड़ की डाल पर टांगी और तालाब में पानी पीने के लिए गया।
अचानक बंदर का आना, दूध का दूध और पानी का पानी
उस पेड़ पर बंदर बैठे हुआ था। उसने उस दूध वाले आदमी को थैली पेड़ की डाली पर रखते हुए देखा। उस बंदर ने सोचा कि आदमी की थैली में कुछ खाने का होगा, यह समझकर उस बंदर ने उस थैली को उठा लिया। और उस पेड़ की ऊंची डाली पर उस थैली को ले जाकर बैठ गया । दूधवाला जैसे पानी पी के वापस आया। तो थैली गायब, थैली न दिखने के कारण वह बेचैन हो गया। उसके चेहरे पर उदासी छा गई। इधर-उधर देखने पर कोई आदमी उस दूध वाले को दिखाई नहीं दिया। दूधवाला काफी हैरान हुआ कि यहां तो कोई था ही नहीं फिर मेरी थैली ली किसने?
फिर इधर-उधर देखते उसकी नजर पेड़ पर बैठे हुए एक बंदर पर पड़ी। वह बंदर पेड़ की काफी उची डाली पर बैठा था। दूधवाला गुस्से से जोर-जोर से पुकारने लगा। अरे बंदर भाई! यह थैली तेरे काम की नहीं है। इसमें जरा भी खाद्य वस्तु नहीं है। मुझ पर दया करो, मैं तेरा उपकार कभी नहीं भूलूंगा लेकिन मेरी थैली मुझे दे दो।
बंदर को तो आप जानते ही हो वह स्वभाव में काफी चंचल होता है। उसने अपने नाखूनों से और मुंह से थैली को फाड़ दिया। एक के बाद एक ऐसे पैसे की नोटों गिरने लगी। एक नोट पानी में एक नोट तालाब के किनारे। एक नोट तालाब में गिरना आराम हो गई, जैसे ही पानी में पैसा गिरता वैसे ही दूधवाले का कलेजा सा फट रहा था। दूधवाला हाय हाय करता रहा लेकिन उसके पास उपाय क्या? आखिर आधे पैसे तालाब के किनारे जमीन पर गिरे और आधे पैसे पानी में बह गए।
शरारती बंदर bachcho ki kahani
इस तरह बंदर ने थेली को फाड़ कर दूधवाले के सारे सारे पैसे गिरा दिए। आधे पैसे पानी में गिरे, आधे बाहर जमीन पर, दूध वाला सिर्फ देखता ही रहा। वह खूब चिल्लाता रहा लेकिन बंदर उसकी सुने तो ना। बंदर तो बंदर होता है। चंचल!
जो पैसा जमीन पर पड़ता उस पैसों को वह दूध वाला उठा लेता। लेकिन पानी का पैसा बह गया। जो पैसा पानी में गिरा उसे बहता देखकर दूधवाला रो रहा था। और जमीन पर पड़े पैसे उठा रहा था।
इतने में ही वहां से एक विद्वान गुजर रहा था। उसने बोला भाई क्यों रो रहे हो? क्या हुआ है?
दूधवाला ने कहा- अरे बाबा इस दुष्ट बंदर ने मेरे आधे रुपए पानी में गिरा दिए इसी दुख में, मैं रो रहा हूं।
विद्वान बड़ा अनुभवी था। उसने कहा- भाई तूने कभी भी दूध में पानी तो नहीं मिलाया न? सच सच बोल भाई।
वह दूधवाला बोला- मैंने अधिक तो नहीं मिलाया, लेकिन 5 लीटर दूध में 5 लीटर पानी मिलाया था।
विद्वान बोला- तो फिर दुख किस बात का है। और तुम दुखी क्यों हो! बंदर ने तुम्हारा भगवान के रूप में आकर सही न्याय कर दिया है। ‘दूध का दूध पानी का पानी’
जो दूध तुमने बेचा उसका पैसा बाहर गिरा जमीन पर। और जो पानी मिलाया था उसका पैसा पानी में बह गया। तालाब को मिल गया, जानते हो ‘भगवान के घर में देर है, अंधेर नहीं। दूध वाला हाथ मलता रह गया। और अपने घर की ओर चल पड़ा।
dudh ka dudh pani ka pani कहानी की सिख
किसी भी व्यक्ति अनैतिक कार्यो के द्वारा धन अर्जित करते हैं। एक बार तो वह अवश्य प्रसन्न होते हैं। लेकिन आखिर में दूध का दूध पानी का पानी होकर ही रहता है। इसलिए हमें नैतिकता का व्यवहार करना चाहिए।
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