dwarka nagri ka rahasya: द्वारका एक ऐसा प्राचीन धार्मिक शहर है। जिसे कभी भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। लेकिन अचानक क्या हुआ की ये पूरी नगरी जलमग्न हो गई। समुद्र की गहराई में इसके अवशेष आज भी मौजूद है। तो चलो आज हम जानते है
dwarka nagri ka rahasya-द्वारका नगरी का ऐतिहासिक रहस्य क्या है?
मथुरा से निकलने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने एक ऐसे नगर की स्थापना की जो विशाल और सुसंगत था। इस नगर का नाम था द्वारका नगरी, लेकिन श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद ये खुबसूरत नगरी समुद्र में डूब गई। रिसर्च के मुताबिक खुदाई में मिली द्वारका की कहानी (9,000) नों हजार साल पुराणी है। ये शहर उन प्राचीन विकसित उन सभ्यता से जुडा है। जिसका निर्माण जब यहाँ कोई दूसरा विकसित शहर नहीं था। ये भारत का सबसे विकसित राज्य हुआ करता था। जो हुबहू आज के आधुनिक शहर के जैसा ही था।
पौराणिक समय की कई ऐसी कहानिया है। जिन्हें आज हम महज एक मिथ मानते है। लेकिन सच तो ये है की धरती के विकास के साथ ही ये सभ्यताए और पौराणिक इतिहास हमेसा के लिए समुद्र की गहराइयो में दफन हो गया। जिन्हें लेकर आज भी खोज जारी है।
समुद्र की गर्त में खोज करने पर कुछ ऐसे साक्स मिले है जो इन पौराणिक कथाओ को सच साबित करते है। इन्ही में से एक है द्वारका नगरी का रहस्य।
हिमयुग की समाप्ति से नष्ट हुई द्वारका
कहते है की नौ हजार साल पहले हिम युग की समाप्ति हुई। जिसके बाद समुद्र का जल स्तर इस कदर बढ़ गया की कई विकसित शहर समुद्र में समां गए। इन्ही में से एक तटवर्तीय नगर द्वारका भी था। इतिहासकारो का कहेना है की द्वारका को कृष्ण के देहांत के बाद जान बुझकर नष्ट किया गया था।
द्वारका का निर्माण
भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा से जाने के बाद अपने पूर्वजो की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया। जिसे श्रीकृष्ण की कर्मभूमि के तौर पर भी जानते है। द्वारका भारत के साथ सबसे प्राचीन नगरो में से एक है।
बाकि छ नगर के नाम कुछ इस तरह है। जैसे मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांचीपुरम और अयोध्या.
कुछ लोग द्वारका को द्वारावती, कोशिष्थली, आनार्तक, ओखामंडल, गोमती द्वारका, चक्रतीर्थ, अन्तर्द्विप और वारिदुर्ग के नाम से भी जानते है।
इस शहर की चारो और बहोत ही लम्बी दीवारे थी। जिसमे कई द्वार थे। काफी द्वारो का शहर होने की वजह से ही इस नगरी का नाम द्वारका पड़ा। कहते है की समुद्र में आज भी इनकी दीवारे खड़ी है।
यादवो की रक्षा के लिए द्वारका पहुचे श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण ने जब कंस का वध किया तो जरासंघ ने श्रीकृष्ण और यदुवंशियो का नामो निशान मिटाने की ठान ली, वो मौका मिलते ही मथुरा और यादवो पर बार बार आक्रमण करता रहा। धीरे धीरे उसके अत्याचार बढ़ने लगे तो आखिर में यादवो की सुरक्षा के लिए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया।
कृष्ण के देहांत के बाद द्वारका का क्या हुआ?
कृष्ण अपने अठारा नए कुल बंधुओ के साथ द्वारका आ गए। यहाँ सब लोग आराम से रहने लगे। समय बितता गया और छत्तीस साल तक राज करने के बाद कृष्णजी का देहांत हो गया। ये वो दौर था। जब यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंघ और यमन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारका पर समुद्र और आसमान से आक्रमण किया गया।
कहते है की कृष्णजी की मृत्यु के बाद उनके परपौत्र वज्रनाभ द्वारका के यदुवंश के अंतिम शाशक थे। जो यदुओ की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए। द्वारका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन; वज्र और शेष बची यादव महिलाओ को हस्तिनापुर ले गए। इनके जाने के बाद द्वारका नगरी समुद्र में समां गई। ऐसे में सवाल उठता है की आखिर पूरी की पूरी नगरी समुद्र में क्यों और कैसे समां गई।
द्वारका नगरी के नष्ट होने पर मत
सवाल उठता है की भला कोई कैसे इतने बड़े शहर के अस्तित्व को ख़त्म कर सकता है। कोई कहेता है यह किसी प्राकृतिक घटना का काम हो सकता है। तो किसी का कहेना है की इसे एलियन्स ने नष्ट कर दिया होगा। जब इसे नष्ट होने के कोई पुख्ता साबुत नहीं मिले तो वैज्ञानिको ने इस राज से पर्दा उठाने के लिए समुद्र की गहराई को टंटोलना चाहां। इस दौरान खोज कर्ताओ को समुद्र के सेकड़ो फिट निचे कुछ ऐसे अवशेष मिले जिन्होंने सबको चौका दिया।
समुद्र में मिले अवशेष
द्वारका के समुद्री अवशेषों पर सबसे पहेली नजर भारतीय वायु सेना के पायलटो की पड़ी जो समुद्र के ऊपर से उडान भर रहे थे। इसके बाद ही 1970 में जामनगर के गजेटियर में इनका उल्लेख किया गया।
इस से पहेले लोगो का कहेना था की द्वारका नगरी एक काल्पनिक नगर है। लेकिन इस कल्पना को आर्कियोलॉजीष्ट प्रोफेसर एस.आर.राव ने सच साबित कर दिया। दरअसल प्रोफेसर राव और उसकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में फाइव हंड्रेड एंड सिकष्टि मीटर लम्बी द्वारका की दीवाल की खोज की जहा उन्हें पौराणिक काल के कुछ बर्तन भी मिले जो 1528 के ई.सा. पूर्व से 30,000 इसा पूर्व के है।
इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष मिले इस खोज के दौरान प्रोफेसर राव ने कई रहस्यों से पर्दा उठाया।
नौसेना और पुरातत्व विभाग की सयुक्त खोजे
2005 और 2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानि Archaeological Survey of India के निर्देशन में भारतीय नौशेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाये द्वारका नगरी के अवशेषों को खोज निकाला।
2005 में अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे छटे पत्थर मिले इस दौरान लगभग 200 सेम्पल जमा किये गए। नौसेना के गोताखोरों ने चालीस हजार वर्ग मीटर के दायरे में इन अवशेषों को खोजा और वहा पड़े भवनों के टुकड़ो के सेम्पल जमा किये। जिन्हें शुरुआत में चुना पत्थर बताया गया था। बाद में अर्कियोलोगिस्ट ने बताया की ये टुकडे बहोत ही विशाल समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष है।
इन सेम्पल्स को देश की लेबोरेटरी में भेजा गया। वही खोज से जुड़े आकड़ो को कई राष्ट्रिय और आंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के सामने भी पेश किया गया। इन विशेषज्ञों में अमेरिका, इझराइल, श्रीलंका और ब्रिटेन के विशेषग्यों भी शामिल थे। इन सेम्पल्स को विदेशी प्रयोगशालाओ में भेजने का असली मकसद था। इन पर किसी भी तरह का कोई शक ना रहे सारी भ्रान्तिया दूर हो जाए।
द्वारका पर रिसर्च- dwarka nagri ka rahasya
2001 में सरकार ने गुजरात के समुद्री तटो पर प्रदुषण से होनेवाले नुकशान का पता लगाने के लिए National Institute of Ocean Technology का चयन किया। जब उनके द्वारा समुद्री जलहटी की जाँच की गई। तो सुनार पर मानव निर्मित नगर पाया गया। जब इसकी जाँच की गई तो पता चला की ये नगर 32 हजार वर्ष पुराना है और नव हजार वर्षो से समुद्र में दफन है।
हलाकि इस मामले पर आज भी शोध जारी है। अब जानना यह है की द्वारका नगरी का नष्ट होने की गुत्थी सुलझने में और कितना समय लगता है।
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