gautam buddha ki kahaniya | गौतम बुद्ध की कहानी

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gautam buddha ki kahaniya, गौतम बुद्ध के प्रेरक प्रसंग

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# 1 मोची और गौतम बुध्ध की कहानी, gautam buddha short story in hindi


 

एक बार की बात है। गौतम बुध्ध मगध राज्य के एक गाव में ठहेरे हुए थे। गाव से थोडा बहार एक मोची अपने परिवार के साथ रहेता था। उस मोची के घर के पास एक तालाब था।

एक दिन रोज की तरह मोची सुबह तालाब में पानी लेने गया। वहा उसने तालाब में बहोत ही सुन्दर एक अदभूत पुष्प देखा। वह पुष्प देखने में काफी सुन्दर था। और चमत्कारी भी प्रतीत हो रहा था। मोची ने तुरंत ही अपनी पत्नी को बुलाया और  वो पुष्प उसे दिखाया।

मोची की पत्नी आध्यात्मिक और धर्म में आस्था रखने वाली थी। वे पुष्प को देखते ही समझ गई की जरुर यहाँ से महान गौतम बुध्ध गुजरे होगे। इन्हींकी प्रताप से यह पुष्प खिला है। पुष्प को चमत्कारिक मान कर मोची ने एक योजना बनाई। और उस योजना के बारे में अपनी पत्नी को बताया। की वे यह पुष्प राजा को देगा और उससे बहोत ही साडी स्वर्ण मुद्राए लेगा। उसकी पत्नी ने भी सोचा की यह पुष्प हमारे किसी काम का नहीं है। इशे राजा से देदो कम से कम कुछ कमाई तो होगी।

पत्नी की सहमती के बाद मोची राजमहल की और निकल गया। राजमहल के रस्ते में उसे एक व्यापारी मिलता है। मोची के हाथ में पुष्प देखकर वह रुक जाता है।

और वह मोची से पूछता है। – भाई ये पुष्प कहा लेकर जा रहे हो?

मोची कहेता है- भाई मै ये पुष्प लेकर राजा के पास जा रहा हु। इसे राजा को भेट करके मुह माँगा इनाम लूँगा।

व्यापारी का मोची को प्रस्ताव

व्यापारी ने मोची को प्रस्ताव दिया। की तुम ये पुष्प मुझे देदो। मै तुम्हे बदले में सो सुवर्ण मुद्राए दूंगा।

मोची सोच में पड गया। और उसने सोचा जब व्यापारी इस पुष्प के लिए सो सुवर्ण मुद्राए दे रहा है तो राजा तो और भी ज्यादा देगा। यही सोचकर उसने व्यापारी को पुष्प देने से इनकार किया। और आगे बढ़ने लगा, थोडा आगे चला ही था की रास्ते में राजा आते हुए दिखे। जो गौतम बुध्ध के दर्शन के लिए जा रहे थे।

राजा भी मोची के हाथ में वो दिव्य फूल देखकर अचंबित हो गए। राजाने यह दिव्य फूल के बदले एक हजार सुवर्ण मुद्राए देने के लिए कहा। यह सुनकर मोची के मन में एक अजीब सी चेतना आई। और वो राजा को पुष्प ना देकर दौड़ता हुआ सीधे महात्मा बुध्ध के पास जा पहोचा। महात्मा बुध्ध मोची को देखकर अचम्बे में पड़ गए। उन्होंने मोची से पूछा- तो मोची ने उन्हें पुष्प की सारी बात बताई। इसके बाद मोची ने वह पुष्प महात्मा गौतम बुध्ध के चरणों में रख दिया।

और मोची ने कहा की पहेले मैंने इश फूल को देखकर लालच आ गई थी। लेकिन मै आब समझगया हु की जिसकी छाया पड़ने से एक पुष्प इतना दिव्य बन गया हो अगर उनकी शरण में मै चला जाऊ, तब मेरा जीवन ही धन्य हो जाएगा।

इसके बाद मोची पूरा जीवन महात्मा बुध्ध का शिष्य बना रहा।

कहानी की सिख, gautam buddha ki kahaniya

हमारी जिंदगी में हमें बहोत सी चीजे अपनी तरफ आकर्षित करती है लेकिन हमें उनकी लालच में न फसकर अपने ज्ञान का प्रयोग करके जीवन में सही राह को चुनना चाहिए।


# 2 अछूत कौन गौतम बुध्ध की कहानी, story of gautam buddha in hindi


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एक दिन भगवान बुध्ध प्रवचन सभा में आये लेकिन मौन बैठ गए। सारे शिष्यगन उनके इस मौन के कारण चिंतित हुए। के महात्मा कही बीमार तो नहीं है।

आखिरकार एक शिष्य ने पूछ ही लिया- गुरुदेव, आज आप इस तरह खामोश क्यू है?

वो कुछ भी नहीं बोले,

तब दुसरे शिष्य ने पूछा- गुरुदेव आप ठीक तो है?

बुध्ध फिर भी मौन ही बैठे रहे,

इतने में ही बहार से एक व्यक्ति ने बहोत तेजी से चिल्लाते हुए कहा- आज आपने मुझे धर्म सभा में आने की अनुमति क्यों नहीं दी।

बुध्ध ने कोई उत्तर नहीं दिया, और आँखे बंध कर के ध्यान मग्न हो गए। वे बहार खड़ा व्यक्ति और जोर से चिल्लाकर कहा- मुझे धर्म सभा में क्यों नहीं आने दिया जा रहा है।

धर्म सभा में बैठे एक शिष्य ने उस बाहरी आदमी का समर्थन करते हुए कहा-गुरूजी उसे धर्म सभा में आने की अनुमति प्रदान करे।

महात्मा बुध्ध ने आँखे खोली और बोले– नहीं उसे अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योकि वे आज अछूत है।

अछूत है , लेकिन क्यों सारे शिष्य यह सुनकर बहोत ही बड़े आश्चर्य में पड गए। की गुरु जी अछूत कब से मानने लगे।

बुद्ध का उपदेश शिष्यों को

महात्मा बुध्धने शिष्य समुदाय के भावो को तोड़ते हुए कहा- हा वे अछूत है। वह आज अपनी पत्नी से लड़कर आया है। और क्रोध से भरा हुआ है। क्रोध से जीवन की शांति भंग होती है। क्रोध से सबसे पहेले मन में हिंसा का जन्म होता है। और फिर इसी मानसिक हिंसा में आ के इन्शान दुनियामे हिंसा, मारपीट, गालिगलोच, और बहोत से गलत काम करता है। क्रोध करने वाला अछूत होता है। क्योकि इसकी विचार तरंगे उसके नकरात्म विचार दूसरो को भी गलत तरीके से प्रभावित करते है।

उसे आज धर्मसभा से बहार ही रहेना चाहिए। उसे आज धर्मसभा से बहार ही रहकर पश्चाताप की अग्नि में तपकर सुध्ध होने दो।

शिष्यगन समझ गए की सही मायनों में अछूत कौन होता है। उस व्यक्ति को भी बहोत पश्चाताप हुआ। तब उसने कभी भी क्रोध ना करने की कसम खाई। तब जाकर भगवान बुध्ध ने उसे धर्मसभा में आने की अनुमति प्रदान की।

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किसी भी इन्शान के अछूत होने का आधार उसका जन्म व धर्म नहीं बल्कि उसके कर्म और बिचार होते है। यदि किसी भी इन्शान के कर्म और विचार की वजह से किसी इन्शान या जानवर किसी को भी नुकशान होता है। वो समाज का एक अहित होता है। तब वो इन्शान अछूत है।

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# (3) सत्य का महत्व, गौतम बुध्ध की कहानी


सत्य के महत्व को समझना जितना कठिन होता है, उतना ही सरल भी अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए भगवान बुद्ध ने सत्य के महत्व को समझाने के लिए एक कथा प्रारंभ की,

एक ब्राह्मण रात्रि में अपने घर के बाहर बैठा था । तभी एक स्त्री सामने से गुजरी और ब्राह्मण ने उसे रोककर कहा- आप कौन है दीदी, इस घोर रात्रि में कहां जा रही है ।

स्त्री बोली- मैं लक्ष्मी हूं इस नगरी को छोड़ कर जा रही हूं । ठीक है, जाओ, ब्राह्मण बोला । कुछ देर बाद एक और स्त्री के निकलने पर ब्राह्मण ने उससे भी वही प्रश्न पूछा- जिसके बाद उत्तर में वह बोली- में कीर्ति हु और यहाँ से जा रही हु । ब्राह्मण ने कहा सौख से जाओ,

उसके बाद उसने एक पुरुष को आते देखा, तो उठकर उसे मार्ग में वही बात पूछी- पुरुष बोला मैं सत्य हूं और इस नगर को छोड़कर जा रहा हूं ।

यह सुनकर ब्राह्मण चिंतित हो उठा ।  लपककर सत्य के चरणों में गिर पड़ा । और गिदगिड़ा कर कहेने लगा । – नहीं भगवन आप यहाँ से न जाए । आपके जाने के बाद कुछ भी नहीं बचेगा । मैं आपको यहां से नहीं जाने दूंगा । भले मेरे प्राण निकल जाए ।

ब्राह्मण की विनंती

परोपकारी ब्राह्मण की विनंती सुनकर सत्य वहीं रुकना स्वीकारते है । ब्राह्मण को संतोष हो जाता है कुछ ही क्षणों में लक्ष्मी और कीर्ति को वापस आते देख कर वे मुस्कुरा कर पूछता है । आप दोनों तो चली गई थी अब क्या हुआ? यह सुनकर दोनों बोली- हे ब्राह्मण देव जहां पर सत्य है । वहां से हम नहीं जा सकते अब हमें भी यही रहना होगा,

भगवान बुध्ध पुन: बोले- श्रेष्ठ जीवन का आधार सत्य है, सत्य के बल पर ईश्वर है, सत्य में ईश्वरीय शक्तियां वास करती है , जो व्यक्ति सत्य को धारण करता है, वे ईश्वर तुल्य हो जाता है, परंतु सत्य का मार्ग कांटों से भरा है ।

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