story of ahilyabai holkar in hindi, महारानी अहिल्याबाई की जीवनी

story of ahilyabai holkar in hindi अहिल्याबाई होलकर जो उस ज़माने की कैसी भी आपदाओ में अपनी राज्य और प्रजा की सेवा की जय अहिल्यादेवी.

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महारानी अहिल्याबाई की जीवनी

छत्रपति शिवाजी महाराज के स्थापित किये हुए हिन्दू राज्यों के विस्तार का शाशन पेशवा बाजीराव अत्यंत शौर्य पूर्ण तरीके से कर रहे थे। उत्तर की तरफ् विस्तार करके वो उन्होंने मालवा प्रांत का विस्तार अपने भाई सामान और एक शूरवीर समान मल्हारराव होलकर को सोपा ।

एक विजय मुहीम से वापस आते वक्त पेशवा बाजीराव और सूबेदार मल्हार राव का निवास चौड़ी नामक गाव में था। और यहा पर उनकी नजर एक अत्यंत बुध्धिमान और चपल लड़की पर पड़ी। जो नजदीक ही खेल रही थी।

पहेली नजर में पेशवा को इस लड़की में शौर्य और तेज नजर आया। और उन्होंने मल्हार राव को उनके पुत्र खंडेराव का विवाह इस लड़की से करने का सुझाव दिया । यह शूरवीर लड़की आगे जाके कहलाई महान देवी और मालवा प्रांत की महारानी जिसका नाम था “देवी अहिल्याबाई

अहिल्यादेवी का जन्म, ahilyabai holkar story in hindi

अहिल्याबाई का जन्म अहमदनगर जिलेमे चौड़ी गाव में 31 मई सन 1725 में हुआ । बचपन से वह अत्यंत बुध्धिमान थी । उनके पिताजी मनाकोजी शिंदे एक गाव के पाटिल अथवा प्रमुख थे । मल्हार राव ने मनाकोजी के समक्ष उनके पुत्र खंडेराव का विवाह का प्रस्ताव रखा ।

अहिल्याबाई का विवाह

और फिर सन 1733 में आठ साल की आयु में अहिल्याबाई और खंडेराव का विवाह  हुआ ।

अहिल्याबाई के पिताजी ने उन्हें बचपन में ही पढ़ना सिखाया था । और फिर ससुराल में उन्होंने गणित और हिसाब किताब शिखा । और मल्हार राव की मदद से उन्होंने घोडेसवारी और शस्त्रकला शिखी ।

अहिल्यादेवी के संतान

सन 1745 में उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ । और लडके का नाम रखा मालेराव और उसके दो साल बाद उन्हें एक कन्या प्राप्त हुई जिसका नाम रखा गया मुक्ताबाई । आगे जाके मुक्ताबाई सती हो गयी।

खंडेराव का मन राज्य कार-भार में ज्यादा नहीं लगता था । ऐसे में मल्हार राव ने अहिल्या बाई को पत्रव्यवहार ,सैन्यव्यवस्था, दरबार व्यवस्था, हिसाब किताब कामदार व्यवस्था और उनका मासिक भत्था बड़े लोगो की सेवा, और कलाकारों का योग्य सत्कार ऐशी अनेक चीजो सिखाई ।

मल्हार राव कभी किसी मुहीम पर बहार होते और कभी पेशवा को मिलने पुणे जाते ऐसी परिश्थितिमे सारा कार्यभार अहिल्याबाई को सोपते, काफी बार वो अहिल्याबाई को युध्ध पर भी साथ में ले जाते ।

पति खंडेराव का निधन, story of ahilyabai holkar in hindi

17 मार्च सन 1754 में एक दुखद घटना घटी मराठाओने कुम्भेर का किल्ला घेर लिया था । इस युध्ध में खंडेराव मार्ये गए ।

सती होने का काल

उस काल में पाती की मृत्यु पश्च्यात पत्नी सती होती थी । पर मल्हार राव ने अहिल्याबाई को सती होने से रोका ।

उन्नतीस साल की उम्र में अहिल्याबाई विधवा हो गई । मल्हार राव ने अहिल्याबाई की बुध्धिमता परख कर उन्हें राज्यकारभार के कामो में शामिल कर लिया और उन्हें आनेक जिम्मेदारिया सोपी । कई बार तो मल्हारराव स्वय अहिल्याबाई से सलाह मशवरा लेते थे ।

दुखद घडी

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सन 1766 में एक मुहीम पर जाते वक्त मल्हार राव का निघन हो गया । तब अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव को पेशवा की तरफ से सूबेदार की जिम्मेदारी मिली ।

और सालभर बाद ही मालेराव का भी निधन हो गया ।

सन 1767 में होलकर घराने के एक मात्र वारिश मालेराव के  निधन के बाद सूबेदार की सारी जिम्मेदारी अहिल्याबाई पर आ गयी ।

अहिल्या देवी का राज्याभिषेक

और फिर 11 दिसम्बर सन 1768 को मालवा प्रांत की महारानी के रूप में अहिल्याबाई का राज्याभिषेक हुआ । इंदोर के दक्षिण में नर्मदा नदी के किनारे बसे महेश्वर में अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी स्थापित की इससे पूर्व सेना का नेतृत्व सवयं अहिल्याबाई करती थी । और बाद में उन्होंने मल्हारराव के मानसपुत्र तुकोजीराव होलकर को सेना की जिम्मेदारी सोप दी । और इस प्रकार तुकोजीराव सेनापति बने ।

देवी अहिल्याबाई न्याय दान के लिए प्रसिध्द थी । वह एक धार्मिक महिला और प्रखर शिव भक्त थी ।

उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण किया और कई मंदिरों का जिर्निध्धार किया, उन्होंने नर्मदा और गंगा नदी के किनारे अनेक घाट बनवाएं और ये सारे निर्माणों का खर्च उन्होंने स्वयं उठाया ।

अहिल्यादेवी की मृत्यु

ऐसी व्यवहार तीक्ष्ण, प्रजा के हित के लिए हमेशा तत्पर राजकाज में उदार और धार्मिक देवी अहिल्याबाई ने 13 अगस्त 1795 को अंतिम सास ली । और होलकर शाही अनाथ हो गई । उम्र के 70 वे पड़ाव पर अहिल्यादेवी ने मालवा प्रांत से अंतिम विदाई ली । अह्ल्यादेवी का चरित्र अलौकिक था । वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं । रानी अहिल्याबाई ने 70 वर्ष की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली और उनके बाद उनके विश्वसनीय तुकोजीराव होलकर ने शासन संभाला।

  • उन्होंने राज्यमे शांति और सुव्यवस्था स्थापित कर के प्रजा को हमेशा सुखी रखा । और भारत की ऐसी महारानी और राजमाता को हमारा कोटि कोटि प्रणाम.
  • अहिल्याबाई को पुण्यश्लोक, लोकमाता, राजमाता और देवी ऐसी पदविया जनता ने दी थी ।

उसके न्यायदान के किस्से आज भी सुनाये जाते है । जिसमेसे एक बहुप्रचलित किस्सा यह है ।

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एक बार मध्यप्रदेश के इंदोर नगर में महारानी देवि अहिल्याबाई होलकर के पुत्र मालेराव का रथ निकला तो उनके रस्ते में एक नवजात बछड़ा आ गया। बछड़े की मा (गाय) वही सड़क के किनारे खडी थी। बछड़ा मालेराव के रथ के पैये के निचे आ गया और बहोत बुरी तरह जख्मी हो गया। और वही उसकी मौत हो गई।

मालेराव का रथ आगे निकल गया। और गाय वही सड़क पर बछड़े के पास आकर बैठ गई। थोड़ी देर बाद अहिल्यादेवी वहा से गुजरी उन्होंने मृत बछड़े के पास बैठी गाय को देखा तो उन्हें समझने में देर नहीं हुई की किसी दुर्घटना में उनकी मौत हुई है। उन्होंने अपने सैनिको से पता करवाया।

सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाईने दरबार में अपने बेटे मालेराव की पत्नी वेनाबाई से पूछा,” यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने उसके बेटे की हत्या कर दे तो उसे क्या दंड देना चाहिए।

मालेरावजी की पत्नी ने जवाब दिया ऐसे व्यक्ति को मृत्युदंड मिलना चाहिए। अहल्याबाई ने मालेराव को हाथ पैर बंधवाकर सड़क पर डालने को कहा और फिर उन्होंने आदेश दिया ,” की मलोजिराव को रथ से टकराव कर के मृत्युदंड दिया जाए। राज्य का कोई भी सारथी यह कार्य करने को तैयार न था। अहल्याबाई न्यायप्रिय थी कहते है जब कोई सारथी राथ्गादी चलाने नहीं आया तो वह स्वयं इस न्याय का कार्य को करने के लिए सारथी बन गई।

अप्रत्याशित घटना —-ahilya bai full story in hindi

वो रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थी के एक मानने में न आये ऐसी ईश्वरीय घटना घटी वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई। उसे बार बार हटाया जाता लेकिन वो फिर रथ के आगे जाके खड़ी हो जाती।

यह देखकर मंत्री ने महारानी से कहा शायद ये बेजुबान गाय भी नहीं चाहती के किसी माँ के सामने बेटे को मार दिया जाए। वो आपसे मलोजिराव की भीख मांग रही है। इसके बाद महारानी अहिल्यादेवी ने बेटे को सजा देने का इरादा बदल दिया।

  • इंदोर में जिस जगह यह घटना घटी थी उस जगहको आज भी आडा बाजार के नाम से जाना जाता है।

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